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________________ शतक १२३ मिच्छक्ख पंचकाया कोहाई तिण्णि एयवेदो य । हस्साइजुयलमेयं भयजुयलं सोलसं जोगो ॥१३४॥ १।१।५।३।१।२।२११। एदे मिलिया १६ । १।१५।३।१।२।२। एकीकृताः १६ प्रत्ययाः । एतेषां भङ्गाः ५।६।६।४।३।२।१० एते परस्परगुणिताः ४३२०० ॥१३॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय पाँच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययगल और योग एक; इस प्रकार सोलह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१३४।। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+५+३+१+२+२+१=१६ । मिच्छक्खं चउकाया कोहाइचउक एयवेदो य । हस्साइजुयलमेयं भयजुयलं एयजोगो य ॥१३॥ १।१।४।४।२।२।१ एदे मिलिया १६ । १।१।४।४।१।२।२।। एकीकृताः १६ । एतेषां सङ्गाः ५।६।१५।४।३।२।१३ । परस्परेण गुणिताः १४०४०० ॥१३५॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और एक योग; इस प्रकार सोलह बन्ध-प्रत्यय होते है ।।१३५॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+४+४+१+२+२+१=१६। एदेसिं च भंगा-- ५।६।१।४।३।२।१३ एदे अण्णोण्णगुणिदा= १३६० ५।६।१।४।३।२।२।१० एदे अण्णोणगुणिदा = १४४०० ५।६।६।४।३२२।१३ एदे अण्णोण्णगुणिदा- ११२३२० ५।६।६।४।३।२।१० एदे अण्णोण्णगुणिदा = ४३२०० ५।६।१५।४।३।२।१३ एदे अण्णोण्णगुणि दा%3D१४०४०० एए सव्वे मिलिया = ३१६६८० एते सर्वे पञ्चराशयः मीलिताः ३११६८० इति मध्यमषोडशप्रत्ययानां विकल्पाः समाप्ताः । इन उपर्युक्त सोलह बन्ध-प्रत्ययोंके पाँचों प्रकारोंके भङ्ग इस प्रकार होते हैंप्रथम प्रकार-५।६।१।४।३।२।१३ इनका परस्पर गुणा करनेपर ६३६० भङ्ग होते हैं । द्वितीय प्रकार-५।६।१।४।३।२।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर १४४०० भङ्ग होते हैं। तृतीय प्रकार-श६६४।३।२।२।१३ इनका परस्पर गणा करनेपर ११२३२० भङ्ग होते हैं। चतुर्थ प्रकार-५।६।६।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर ४३२०० भङ्ग होते हैं। पंचम प्रकार-५।६।१५।४।३।२।२।१३ इनका परस्पर गुणा करनेपर १४०४०० भङ्ग होते हैं। उपयुक्त सर्व भङ्गोंका जोड़-- =३१६६८० यह सोलह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका प्रमाण है। मिथ्यादृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले सत्तरह बन्ध-प्रत्यय- का० भन. भ० सम्बन्धी भङ्गोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी रचना इस प्रकार है मिच्छिदिय छकाया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयदुय एयं च सत्तरस जोगो ॥१३६॥ १।१।६।४।१।२।१1१ एदे मिलिया १७ । १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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