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________________ १२८ पञ्चसंग्रह तृतीय प्रकार-५।६।६।४।३।२।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर ८६४०० भङ्ग होते हैं। चतुर्थ प्रकार-५।६।१।४।३।२।२।१३ इनका परस्पर गुणा करनेपर २८०८०० भङ्ग होते हैं। पंचम प्रकार-५।६।१५।४।३।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर १०८००० भङ्ग होते हैं । पाठ प्रकार-५।६।२०।४।३।२।१३ इनका परस्पर गुणा करनेपर १८७२०० भङ्ग होते हैं। उपर्युक्त सर्व भङ्गोंका जोड़ ७२५७६० यह सब पन्द्रह बन्ध-प्रत्यय-सम्बन्धी भङ्गोंका प्रमाण जानना चाहिए। का० अन. भ. मिथ्यादृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले सोलह बन्ध-प्रत्ययसम्बन्धी भङ्गोंको निकालनेके लिए बीजभूत कुटकी रचना इस प्रकार है-- मिच्छिंदिय छकाया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्सादिजुयं एयं जोगो सोलस हवंति ते हेऊ ॥१३१॥ __१११।६।४।३।२।१ एदे मिलिया १६ । अथ मध्यमषोडशप्रत्ययभेदेषु पट्-षट्-पञ्च-पञ्च-चतुःकायविराधनादिप्रत्ययभेदान् गाथापञ्चकेनाऽऽह[ 'मिच्छिदिय छक्काया' इत्यादि । ] १३६।४।१।२।१ एकीकृताः ते षोडश १६ हेतवो भवन्ति । एतेषां भङ्गाः ५।६।१।१३।२।१३। एते परस्परेण गुणिताः ६३६० विकल्पा भवन्ति ॥१३॥ अथवा मिथ्यात्व गुणस्थानमें मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार, एक वेद, हास्यादि युगल एक और योग एक; इस प्रकार सोलह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१३१।। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+६+४+१+२+१=१६ । मिच्छिंदिय छक्काया कोहाई तिणि एयवेदो य । हस्सादिदुयं एयं भयदुय एयं च सोलसं जोगो ॥१३२॥ ११।६।३।१।२।१।१ एदे मिलिया १६ । ११।६।३।१२।११ एकीकृताः १६ प्रत्ययाः। एतेषां भङ्गाः ५।६।१।४।३।२।२।१० एते अन्योन्यगुणिताः १४४०० भवन्ति ॥१३२॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगलमेंसे एक और योग एक, इस प्रकार सोलह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥१३२।। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+६+३+१+२+१+१=१६। मिच्छक्ख.पंचकाया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइदुयं एयं भयदुय एयं च सोलसं जोगो ॥१३३॥ १।१।५।४।१।२।१।१ एदे मिलिया १६ । १।१।५।४।१।२।१११ रकीकृताः १६ । एतेषां भङ्गाः ५।६।६।४।३।२।२।१३। एते अन्योन्यताडिताः ११२३२० प्रत्ययविकल्पाः स्युः ॥१३३॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय पाँच, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक; इस प्रकार सोलह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।१३३॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+५+४+१+२+१+१=१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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