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________________ १२२ पञ्चसंग्रह चतुर्थ प्रकार-१६।६४।३।२।२।१३ इनका परस्पर गुणा करनेपर ११२३२० भङ्ग होते हैं। पंचम प्रकार-५।६।६।४।३।२।२।१० इनका परस्पर गुणा करनेपर ४३२०० भङ्ग होते हैं। उक्त पाँचों प्रकारोंके भङ्गोंके प्रमाणको जोड़ देनेपर ( १४४०००+१४०४००+२१६०००+ ११२३२०+४३२००=) बारह बन्धप्रत्यय-सम्बन्धी सर्व मध्यम भङ्गों का प्रमाण ६५५६२० होता है। का० अन० भ० ___ मिथ्यादृष्टिके आगे बतलाये जानेवाले तेरह बन्ध-प्रत्यय- सम्बन्धी भङ्गोंको निकालनेके लिए बीजभूत कूटकी रचना इस प्रकार है ३ ३ ० १ मिच्छक्खं चउकाया कोहाई तिणि एयवेदो य । हस्साइजुयलमेयं जोगो तेरह हवंति ते हेऊ ॥११३॥ ११।४।३।३।२।१। एदे मिलिया १३ । मध्यमत्रयोदशप्रत्ययभेदाः चतुरित्रिद्विद्वयककायविराधनादिभेदान् गाथाषटकेनाऽऽह-["मिच्छक्खं चउकाया' इत्यादि । ] १११।४।३।१२।१ एते मिलिता: १३ । एतेषां च भङ्गाः ५।६.१५।४।३।२।१० एते अन्योन्यगुणिताः १०८०००॥११३॥ अथवा मिथ्यात्वगुणस्थानमें मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक इस प्रकार तेरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ।।११३॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+४+३+१+२+ १ =१३ । मिच्छत्तक्ख तिकाया कोहाइचउक्क एयवेदो य । हस्साइजुयलमेयं जोगो तेरह हवंति ते हेऊ ॥११४॥ १११।३।४।१।२।१ । एदे मिलिया १३ । १।१३।४।।२।१ एते मीलिताः १३ त्रयोदश मध्यमप्रत्ययाः भवन्ति । एतेषां विकल्पाः ५।६।२०१४।३२।१३ एते परस्परगुणिता: १८७२०० ॥११॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक; इस प्रकार तेरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥११४॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+३+४+१+२+१= १३ । मिच्छत्तक्खतिकाया कोहाई तिण्णि एयवेदो य । हस्सादिदुयं एयं भय दुय एयं च जोगो य ॥११॥ __११३।३।१।२।१।१ । एदे मिलिया १३ । १।१।३।३।१।११।१ एकीकृताः १३ प्रत्ययाः भवन्ति । एतेषां भङ्गाः ५।६।२०।४।३।२।२।१०। एते परस्परेण हताः २८००० विकल्पा भवन्ति ॥१५॥ अथवा मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विकमेंसे एक और योग एक; इस प्रकार तेरह बन्ध-प्रत्यय होते हैं ॥११४॥ इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है-१+१+३+३+१+२+१+१= १३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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