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________________ ६४ पञ्चसंग्रह वज्रनाराचसंहनन और नाराचसंहनन ये दो प्रकृतियाँ उपशान्तमोहगुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं ॥३७॥ उपशान्तमोहमें उदय-व्युच्छिन्न २ । क्षीणमोहगुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियाँ[मूलगा०२७] "णिद्दा पयला य तहा खीणदुचरिमम्हि उदयवोच्छिण्णा । ॥२॥ निद्रा और प्रचला ये दो प्रकृतियाँ क्षीणकधायके द्विचरम समयमें उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं। क्षीणमोहके द्विचरमसमयमें उदय-व्युच्छिन्न २ । *णाणंतरायदसयं दंसणचत्तारि चरिमम्हि ॥३८॥ १४॥ ज्ञानावरणको पाँच, अन्तरायकी पाँच और दर्शनावरणकी चतुदर्शनावरणादि चार; ये चौदह प्रकृतियाँ क्षीणमोहके अन्तिम समयमें उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं ॥३८॥ क्षीणमोहके चरमसमयमें उदय-व्युच्छिन्न १४ । सयोगिकेवलीगुणस्थानमें उदयसे व्युच्छिन्न होनेवाली प्रकृतियाँ[मूलगा०२८] अण्णयरवेयणीयं ओरालियतेयणामकम्मं च । छच्चेव य संठाणं ओरालिय-अंगवंगं च ॥३६॥ [मूलगा०२६] आदी वि य संघयणं वण्णचउक्कं च दो विहायगई। अगुरुगलहुयचउक्कं पत्तेय थिराथिरं चेव ॥४०॥ [मूलगा०३०] सुह-सुस्सरजुयला वि य णिमिणं च तहा हवंति णायव्वा । एए तीसं पयडी सजोयचरिमम्हि वोच्छिा ॥४१॥ ।३०॥ [अन्यतरद्वेदनीयं १ औदारिकशरीरं १ तैजसनाम १ कार्मणशरीरनाम १ संस्थानपटकं ६ औदारिकाङ्गोपाङ्गं १ वज्रवृषभनाराचसंहननं १ वर्णचतुष्कं ४ विहायोगतिद्विकं २ अगुरुलधुचतुष्कं ४] प्रत्येकशरीरं १ स्थिरास्थिरे २ शुभाशुभे २ सुस्वर-दुःस्वरौ २ निर्माण १ चेति एतास्त्रिंशत्प्रकृतयः ३० सयोगकेवलिगुणस्थानस्य चरमसमये उदयतो व्युच्छिन्ना भवन्तीति ज्ञातव्याः ॥३६-४१॥ साता-असातावेदनीयमेंसे कोई एक वेदनीय, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, छहों संस्थान, औदारिक-अंगोपांग, आदिका वज्रवृषभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगति, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ-युगल, सुस्वर-युगल, तथा निर्माण; ये तीस प्रकृतियाँ सयोगिकेवलीके चरमसमयमें उदयसे व्युच्छिन्न होती हैं, ऐसा जानना चाहिए ॥३६-४१॥ सयोगिकेवलीमें उदय-व्युच्छिन्न ३० । 1. सं० पंचसं० ३, ५० उत्तरार्ध । 2. ३, ५१ । 3. ३, ५२-५४ पूर्वार्ध । १. कर्मस्त० गा० ३३ । गो० क० २७० । २. कर्मस्त० गा० ३४ । ३. कर्मस्त० गा० ३५। ४. कर्मस्त. गा० ३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001937
Book TitlePanchsangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages872
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size21 MB
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