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विभाग किए हैं-१. मित्रा, २. तारा, ३. बला. ४. दीप्रा. ५. स्थिरा, ६. कान्ता, ७. प्रभा, और ८. परा ।
ये आठ विभाग पातञ्जल योग-सूत्र में क्रमशः यम, नियम, प्रत्याहार आदि; बौद्ध परम्परा के खेद, उद्वेग आदि, पृथकजनगत अष्ट दोष-परिहार और अद्वष, जिज्ञासा आदि अष्टयोग गुणों के प्रकट करने के आधार पर किए गए हैं। इसके पश्चात् उक्त आठ भूमिकाओं में प्रवर्तमान साधक के स्वरूप का वर्णन किया है । इसमें पहली चार भूमिकाएँ प्रारंभिक अवस्था में होती हैं। इनमें मिथ्यात्व का कुछ अंश शेष रहता है । परन्तु, अन्तिम की चार भूमिकाओं में मिथ्यात्व का अंश नहीं रहता है।
द्वितीय विभाग में योग के तीन विभाग किए हैं---१. इच्छा-योग, २. शास्त्र-योग और ३ सामर्थ्य योग। धर्म-साधना में प्रवृत्त होने की इच्छा रखने वाले साधक में प्रमाद के कारण जो विकल-धर्म-योग है, उसे 'इच्छा-योग' कहा है । जो धर्म-योग शास्त्र का विशिष्ट बोध कराने वाला हो या शास्त्र के अनुसार हो, उसे 'शास्त्र-योग' कहते हैं और जो धर्म-योग आत्म-शक्ति के विशिष्ट विकास के कारण शास्त्र-मर्यादा से भी ऊपर उठा हुआ हो, उसे 'सामर्थ्य-योग' कहते हैं।
तृतीय भेद में योगी को चार भागों में बाँटा है-१. गोत्र-योगी, २. कुलयोगी, ३. प्रवृत्त-चक्र योगी, और ४. सिद्ध (निष्पन्न)-योगी । इसमें गोत्र योगी में योगसाधना का अभाव होने के कारण वह योग का अधिकारी नहीं है। दूसरा और तीसरा योगी योग-साधना का अधिकारी है और सिद्ध-योगी अपनी साधना को सिद्ध कर चुका है, अब उसे योग की आवश्यकता ही नहीं है। इसलिए वह भी योग-साधना का अधिकारी नहीं है । इस तरह योगदृष्टि समुच्चय में अष्टांग योग एवं योग तथा योगियों के वर्गीकरण में नवीनता है। ३. योग-शतक
प्रस्तुत ग्रन्थ विषय-निरूपण की दृष्टि से योग-बिन्दु के अधिक निकट है । योग-बिन्दु में वणित अनेक विचारों का योग-शतक में संक्षेप से वर्णन किया है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में योग का स्वरूप दो प्रकार का बताया है-१. निश्चय, और २. व्यवहार । सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र का आत्मा के साथ के सम्बन्ध को 'निश्चय-योग' कहा है और उक्त तीनों के कारणों-साधनों को 'व्यवहार-योग' कहा है। योग-साधना के अधिकारी और अनधिकारी का वर्णन योग-बिन्दु की तरह किया है । चरमावर्त में प्रवर्तमान योग अधिकारियों का वर्णन एवं अयुनर्बन्धक सम्यग्दृष्टि का वर्गीकरण योग-बिन्दु के समान ही किया है।
__ साधक जिस भूमिका पर स्थित है, उससे ऊपर की भूमिकाओं पर पहुँचने के लिए उसे क्या करना चाहिए ? इसके लिए योग-शतक में कुछ नियमों एवं साधनों
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