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जुलता सूत्र है। परन्तु 'अथ सम्यग्दर्शनाभ्युपायो योग' :-इस सत्र की मौलिकता एवं शब्द-रचना से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि आचार्य शंकर द्वारा उद्धृत अन्तिम दो उल्लेख भी इसी योगशास्त्र के होने चाहिए । दुर्भाग्य से वह योग-शास्त्र आज अनुपलब्ध है । अतः वैदिक परम्परा के योग विषयक साहित्य में योग-सूत्र सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।
प्रस्तुत योग-सूत्र चार पाद में विभक्त है और इसमें कुल १६५ सूत्र हैं । प्रथम पाद का नाम समाधि, द्वितीय का साधन, तृतीय का विभूति और चतुर्थ का नाम कैवल्य पाद है । प्रथम पाद में प्रमुख रूप से योग के स्वरूप, उसके साधन और चित्त को स्थिर बनाने के उपायों का वर्णन है । द्वितीय पाद में क्रिया-योग, योग के आठ अंग, उनका फल और हेय-हेतु, हान और हानोपाय-इस चतुव्यूह का वर्णन है। तृतीय पाद में योग की विभूतियों का उल्लेख किया गया है और चतुर्थ पाद में परिणामवाद का स्थापन, विज्ञानवाद का निराकरण और कैवल्य अवस्था के स्वरूप का वर्णन है।
प्रस्तुत योग सूत्र सांख्य दर्शन के आधार पर रचा गया है। यही कारण है कि महर्षि पतंजलि ने प्रत्येक पाद के अन्त में यह अंकित किया है-योग-शास्त्र सांख्य-प्रवचने । 'सांख्य प्रवचने' इस विशेषण से यह स्पष्टतः ध्वनित होता है कि सांख्य दर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों के सिद्धान्तों के आधार पर निर्मित योग शास्त्र भी उस समय विद्यमान थे।
यह हम पहले बता चुके हैं कि सभी भारतीय विचारकों, दार्शनिकों एवं साहित्यकारों के चिन्तन का आदर्श मोक्ष रहा है । परन्तु, मोक्ष के स्वरूप के सम्बन्ध में सभी विचारक एकमत नहीं हैं । कुछ विचारक मुक्ति में शाश्वत सुख नहीं मानते। उनका विश्वास है कि दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति ही मोक्ष है। इसके अतिरिक्त वहाँ शाश्वत सुख जैसी कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं है। कुछ विचारक मुक्ति में शाश्वत सुख का अस्तित्व स्वीकार करते हैं । उनका यह दृढ़ विश्वास है कि जहाँ शाश्वत सुख है, वहाँ दुःख का अस्तित्व रह ही नहीं सकता, उसकी निवृत्ति तो स्वतः ही हो जाती है।
वैशेषिक, नैयायिक,२ सांख्य,३ योग और बौद्ध दर्शन५ प्रथम पक्ष को
१ देखें पातञ्जल योग स्त्र १, ६. २ तदत्यन्तविमोक्षोऽपवर्गः ।
-~-न्याय दर्शन, १, १, २२. ३ ईश्वरकृष्ण रचित सांख्यकारिका १ ४ योग-सूत्र में मुक्ति में हानत्व माना है और दुःख के आत्यन्तिक नाश को ही हान कहा है।
पातञ्जल योग सूत्र २, २६. ५ तथागत बुद्ध के तृतीय निरोध नामक आर्यसत्य का अर्थ दुःख का नाश है।
-बुद्धलीलासार संग्रह पृ० १५०.
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