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सामायिक : शुद्धि, अशुद्धि | २३९ शुद्धि के भेद से-समत्व-साधना की तरतमता से तथा वीतराग-आज्ञाशास्त्रज्ञान की परिणति-जीवन में क्रियान्विति के अनुसार अनेक प्रकार का होता है, यह जानना चाहिए। सामायिक : शुद्धि, अशुद्धि
[ १७ ] पडिसिद्ध सु य देसे विहिएसु य ईसिरागभावे वि। । सामाइयं असुद्ध सुद्ध समयाए दोस पि ॥
शास्त्र में जिनका निषेध किया गया है , ऐसे विषयों में द्वेषअप्रीति, जिन विषयों का शास्त्र में विधान किया गया है, उनके सम्बन्ध में थोड़ा भी राग-इनके कारण सामायिक अशुद्ध हो जाती है। जो इन दोनों में-निषिद्ध और विहित में समभाव रखता है, उसके सामायिक शुद्ध होती है।
[ १८ ] . एयं विसेसनाणा आवरणावगमभेयओ चैव ।।
इय दट्ठव्वं पढमं भूसणठाणाइपत्तिसमं ॥ विशेष ज्ञान के कारण तथा कर्मावरण हटने की तरतमता के कारण वह शुद्ध सामायिक, सम्यक्दर्शन के लाभ के परिणाम-स्वरूप जीवन में फलित होने वाले शुभ चिन्हों में से कौशल, तीर्थसेवन, भक्ति, स्थिरता तथा प्रभावना, जो भूषण कहे जाते हैं, के सिद्ध होने पर एवं आसन आदि के सिद्ध होने पर प्रथम सामायिक अथवा सम्यक्त्व-सामायिक है, ऐसा जानना चाहिए।
ग्रन्थकार आचार्य हरिभद्रसूरि ने सम्बोधप्रकरण नामक अपने एक दूसरे ग्रन्थ में तथा उत्तरवर्ती उपाध्याय यशोविजयश्री ने अपनी 'सम्यक्त्व प्राप्ति' नामक कृति में इस सन्दर्भ में विशेष रूप से चर्चा की है। उनके अनुसार सम्यक्दर्शन, जिसे पातञ्जल योग की भाषा में विवेकख्याति कहा जा सकता है, जो सामायिक शुद्धि की पहली सीढ़ी है, प्राप्त हो जाने पर जीवन में सहजतया एक परिवर्तन आ जाता है । जीवन की दिशा बदल जाती है । फलस्वरूप जीवन-व्यवहार में, चिन्तन क्रम में कुछ ऐसी विशेष.
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