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________________ सर्वज्ञवाद | २१५ और इस मत के अनुसार उसका अस्तित्व है नहीं । इसी प्रकार कौन इस (नैरात्म्यवाद के ) सिद्धान्त का प्रतिपादन करे तथा एकान्ततः साररहित यह विषय किसके समक्ष प्रतिपादित किया जाए, किसे समझाया जाए । [ ४६६-४६७ ] कुमारीसुतजन्मादिस्वप्न बुद्धिसमोदिता भ्रान्तिः सर्वेयमिति चेन्ननु सा धर्म एव हि ॥ कुमार्या भाव एवेह यदेतदुपपद्यते । स्वप्नदर्शनम् ॥ वन्ध्या पुत्रस्य लोकेऽस्मिन्न जातु स्वप्न में कुमारिका को पुत्र जन्म की अनुभूति एक भ्रान्ति है, उसी प्रकार यह (नैरात्म्यवादी सिद्धान्त ) एक भ्रान्ति है, ऐसा कहा जाता है । इसमें भी थोड़े संशोधन की गु ंजाइश है । भ्रान्ति मिथ्यामूलक ही सही, एक धर्म या विषय तो हैं, जिसका आधार या धर्मी कुमारिका अस्तित्व लिए है । इसके स्थान पर यदि वन्ध्यापुत्र को स्वप्न आने की बात कही जाए तो वह सर्वथा असंभव होगी । क्योंकि वन्ध्या-पुत्र का कहीं अस्तित्व ही नहीं होता । यह उदाहरण नैरात्म्यवाद के साथ सर्वथा संगत है । नैरात्म्यवाद वन्ध्या-पुत्र की तरह सर्वथा निराधार एवं अस्तित्व शून्य है । I 1 [ ४६८ ] क्षणिकत्वं तु नैवास्य क्षणादूध्वं विनाशतः । अन्यस्याभावतोऽसिद्ध रन्यथान्वयभावतः आत्मा का क्षणिकत्व भी सिद्ध नहीं होता । क्षणिक या क्षणवर्ती आत्मा अपने उद्भव के क्षण के नष्ट होते ही नष्ट हो जाती है । यों जो आत्मा नष्ट हो गई हो, उससे दूसरी का उद्भव नहीं हो सकता । वैसा होने के लिए आगामी क्षण में भी उसकी विद्यमानता माननी होगी। दूसरे प्रकार से यदि यों माना जाए कि अगले क्षण सर्वथा अन्य - पूर्ववर्ती आत्मा से बिल्कुल असम्बद्ध आत्मा उद्भूत होती है, तब फिर पूर्ववर्ती एवं उत्तरवर्ती आत्मा में अन्वय-संगति घटित नहीं होती । प्रत्येक सन्दर्भ में दोनों की असम्बद्धता सिद्ध होती है, जो वस्तुस्थिति के प्रतिकूल है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001935
Book TitleJain Yog Granth Chatushtay
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1982
Total Pages384
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size18 MB
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