SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारित्री | १७७ उद्धार पल्योपम के दो भेद हैं—सूक्ष्म एवं व्यावहारिक । उपर्युक्त वर्णन व्यावहारिक उद्धार-पल्योपम का है। सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम इस प्रकार है व्यावहारिक उद्धार-पल्योपम में कुए को भरने में योगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों की चर्चा आयी है, उनमें से प्रत्येक टुकड़े के असंख्यात, अदृश्य खण्ड किए जाएं। उन सूक्ष्म खण्डों से पूर्व वणित कुआ लूंस-ठूस कर भरा जाए। वैसा कर लिए जाने पर प्रतिसमय एक-एक खण्ड कुए में से निकाला जाय । यों करते-करते जितने काल में वह कुआ, बिलकुल खाली हो जाय, उस काल-अवधि को सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम कहा जाता है। इसमें संख्यात-वर्ष कोटि परिमाण काल माना जाता है । अद्धा-पल्योपम-अद्धा देशी शब्द है, जिसका अर्थ काल या समय है। आगम के प्रस्तुत प्रसंग में जो पल्योपम का जिक्र आया है, उसका आशय इसी पल्योपम से है। इसकी गणना का क्रम इस प्रकार है-योगलिक के बालों के टुकड़ों से भरे हुए कुए में से सौ सौ वर्ष में एक-एक टुकड़ा निकाला जाय । इस प्रकार निकालते-निकालते जितने काल में वह कूआ बिलकुल खाली हो जाय, उस कालावधि को अद्धा-पल्योपम कहा जाता है । इसका परिमाण संख्यात वर्ष कोटि है। अद्धा-पल्योपम भी दो प्रकार का होता है-सूक्ष्म और व्यावहारिक । यहाँ जो वर्णन किया गया है, वह व्यावहारिक अद्धा-पल्योपम का है। जिस प्रकार, सूक्ष्म उद्धार पल्योपम में योगलिक शिशु के बालों के टकड़ों के अंख्यात अदृश्य खण्ड किए जाने की बात है, तत्सदृश यहाँ भी वैसे ही असंख्यात, अदृश्य केश खण्डों से वह कुआ भरा जाय । प्रति सौ वर्ष में एक खण्ड निकाला जाय । यों निकालते-निकालते जब कुआ बिलकुल खाली हो जाय, वैसा होने में जितना काल लगे, वह सूक्ष्म-अद्धा-पल्योपम कोटि में आता है। इसका काल-परिमाण असंख्यात वर्ष कोटि माना गया है। क्षेत्र-पल्योपम-ऊपर जिस कुए या धान के विशाल कोठे की चर्चा है, यौगलिक के बाल खण्डों से उपर्युक्त रूप में दबा-दबा कर भर दिये जाने पर भी उन खंडों के बीच में आकाश प्रदेश-रिक्त स्थान रह जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001935
Book TitleJain Yog Granth Chatushtay
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1982
Total Pages384
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy