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प्रदेश, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों की पद-यात्राएँ कों, जन-जन को भगवान् महावीर के दिव्य सन्देश से अनुप्राणित किया, आज भी कर रही हैं। उनकी दृढ़ता, साहस, उत्साह तथा निर्भीकता निःसन्देह स्तुत्य हैं, उन्होंने काश्मीर जैसे दुर्गम प्रदेश की भी यात्रा की, जो वास्तव में उनकी ऐतिहासिक यात्रा थी। शताब्दियों में संभवतः यह प्रथम अवसर था, जब एक जैन साध्वी ने काश्मीर-श्रीनगर तक की पद-यात्रा की हो । महासतीजी द्वारा अपने जीवन के संस्मरणों के रूप में लिखित 'हिम और आतप' नामक पुस्तक मैंने देखी । पुस्तक इतनी रोचक लगी कि मैंने एक ही बैठक में उसे आद्योपान्त पढ़ डाला । पुस्तक में उनकी काश्मीर-यात्रा के घटना क्रम, संस्मरण भी उनकी लेखिनी द्वारा शब्द बद्ध हुए हैं, जो निसन्देह बहुत ही प्रेरणाप्रद है । दुर्गम, विषम, संकड़े पहाड़ी मार्ग, तन्निकटवर्ती काल-सा-मुंह बाये सैकड़ों फुट गहरे खड्ड, नुकीली चट्टानें, उफनती नदियाँ, पिघलते ग्लेशियर, (Glacier) छनते बादल-अपरिसीम, अद्भुत प्राकृतिक सुषमा पर साथ ही साथ एक पदयात्री के लिए भीषण, विकराल, संकट परम्परा-महासतीजी ने यह सब देखा, अनुभूत किया । जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य ने उनके साहित्य हृदय को सात्त्विक भावों का दिव्य पाथेय दिया, वहाँ संकटापन्न, प्राणघातक परिस्थितियों ने उनके राजस्थानी वीर नारी सुलभ शौर्य को और अधिक प्रज्वलित तथा उद्दीप्त किया। किसी भी भयावह स्थिति में उनका धीरज विचलित नहीं हुआ। जिन्होंने गृही जीवन में शेरों तक को पछाड़ डाला तथा सन्यस्त जीवन में उसी अनुपात में आत्मशक्ति की विराट ज्योति स्वायत्त की ऐसे महान् पिता की महान् पुत्री को भय कहाँ से होता ? उन्होंने सानन्द, सोत्साह, सोल्लास अपनी काश्मीर यात्रा संपन्न की। वह प्रदेश, जो वर्तमान में भगवान् महावीर के आध्यात्मिक सन्देश के परिचय में कम आ पाया था, उन्हीं भगवान् महावीर के पद चिन्हों पर चलने वाली उन्हीं की परमोपासिका एक महिमामयी भारतीय नारी की योग-परिष्कृत कण्ठ-ध्वनि से निःसृत निनाद द्वारा पुनः मुखरित हो उठा।
___अस्तु, महासतीजी ने जिस महान् ध्येय को लेकर अत्यन्त उत्साह, ओजस्विता और निष्ठा के साथ जिस अभिनव दिशा में प्रयाण किया, वे उस पर उसी अन्तःस्फूर्ति के साथ आज भी चलती आ रही हैं। यह सब इसलिए है कि योगानुभूति से जीवन में प्रशम-रस का वह निर्झर फूट पड़ता है, जिसमें साधनागत श्रम आनन्द बन जाता है।
यहाँ महासतीजी के सम्बन्ध में जो कुछ मेरी लेखिनी से उद्गीर्ण हुआ है, वह मेरे हृदय से संस्फुटित श्रद्धा-प्रसूत भावराशि है, जिसे शब्द रूप में बाँधने से मैं अपने को रोक नहीं सका । पर, मैं जहाँ तक समझता हूँ, यह अनुपयुक्त नहीं हुआ। इस महिमामयी नारी के साधनामय जीवन के ये ज्योति-स्फुलिंग, मुझे आशा है, पाठकों को दिव्य जीवन की प्रेरणा देंगे जो सबके लिये नितान्त वाञ्छनीय है।
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