________________ 256 TATTVARTHA SUTRA अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तश्य्यासनकायक्लेशा बाह्यं तपः // 9-19 // प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् // 9-20 // नवचतुरदॆशपञ्चद्विभेदं यथाक्रमं प्राग्ध्यानात् // 9-21 // आलोचनप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारोपस्थापनानि // 9-22 // ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः / / 9-23 / / आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्षकग्लानगणकुलसङ्घसाधुसमनोज्ञानाम् // 9-24 // वाचनाप्रच्छनानुप्रेक्षाऽऽम्नायधर्मोपदेशाः // 9-25 // बाह्याभ्यन्तरोपध्योः // 9-26 / / | उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम् // 9-27 // आमुहूर्तात् // 9-28 // आर्तरौद्रधर्मशुक्लानि // 9-29 // परे मोक्षहेतू // 9-30 // आर्तममनोज्ञानां सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः // 9-31 // वेदनायाश्च // 9-32 // विपरीतं मनोज्ञानाम् // 9-33 // निदानं च // 9-34 // तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम् / / 9--35 // हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः // 9-36|| आज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य // 9-37 // उपशांतक्षीणकषाययोश्च // 9-38|| शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः // 9-39 // परे केवलिनः // 9-40 // पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवृत्तीनि // 9-41 // तत्त्र्येककाययोगायोगानाम् // 9-42 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org