________________ तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् 255 नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात् सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाढस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः // 8-25 // सद्वेद्यसम्यक्त्वहास्यरतिपुरुषवेदशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् // 8-26 // नवमोऽध्यायः आस्रवनिरोधः संवरः // 9-1 // स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः / / 9-2 // तपसा निर्जरा च // 9-3 / / सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः // 9-4 // ईर्याभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः // 9-5 // उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः // 1-6 / / अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुचित्वास्रवसंवरनिर्जरा लोकबोधिदुर्लभधर्म स्वाख्यातत्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः // 9-7 // मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिषोढव्याः परीषहाः // 9-8 // क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याऽऽक्रोशवधयाचनाऽलाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानादर्शनानि / / 9-9 // सूक्ष्मसम्परायच्छास्थवीतरागयोश्चतुर्दश // 9-10 // एकादश जिने // 9-11 // बादरसम्पराये सर्वे // 9-12 // ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने // 9-13 // दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ // 9-14 // चारित्रमोहेनाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः // 9-15 / / वेदनीये शेषाः // 9-16 // एकादयो भाज्या युगपदैकोनविंशतः // 9-17 // सामायिकच्छेदोपस्थाप्यपरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसंपराययथाख्यातानि चारित्रम् / / 9-18 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org