________________ 254 TATTVARTHA SUTRA प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशास्तद्विधयः // 8-4|| आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुष्कनामगोत्रान्तरायाः // 8-5 // पञ्चनवद्वयष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्विपञ्चभेदा यथाक्रमम् // 8-6 / / मत्यादीनाम् // 8-7|| चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रा निद्रानिद्रा पचला प्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धिवेदनीयानि च // 8-8 // सदसद्वेद्ये // 8-9 // दर्शनचारित्रमोहनीयकषायनोकषायवेदनीयास्यास्त्रिद्विषोडशनवभेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि कषायनोकषायावनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणसंज्वलन विकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोमा हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुंनपुंसकवेदाः // 8-10 // नारकतैर्यग्योनमानुषदैवानि // 8-11 // गतिजातिशरीराङ्गोपाङ्गनिर्माणबन्धनसङ्घातसंस्थानसंहननस्पर्शरसगन्धवर्णानुपूर्व्यगुरुलघूपघातपराघातातपोद्योतोच्छवासविहायोगतयः प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभसूक्ष्मपर्याप्तस्थिरादेययशांसि सेतराणि तीर्थकृत्त्वं च // 8-12 // उच्चैर्नीचैश्च // 8-13 // दानादीनाम् / / 8-14 // आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपम कोटीकोट्यः परास्थितिः // 8-15 / / सप्ततिर्मोहनीयस्य // 8-16 // नामगोत्रयोविंशतिः // 8-17 // त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाण्यायुष्कस्य // 8-18|| अपराद्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य / / 8-19 / / नामगोत्रयोरष्टौ / / 8-20 // शेषाणामन्तर्मुहूर्तम् / / 8-21 // विपाकोऽनुभावः / / 8-22 // स यथानाम // 8-23 // ततश्चनिर्जरा // 8-24 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org