________________ तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् 253 मारणान्तिकी संलेखनां जोषिता // 7-17 // शंकाकांक्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवा: सम्यग्दृष्टेरतिचाराः // 7-18 // व्रतशीलेषुपञ्च पञ्च यथाक्रमम् // 7-19 // बन्धवघच्छविच्छेदातिभारारोपणानपाननिरोधाः // 7-20 // मिथ्योपदेशरहस्याभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः / / 7-21 // स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिकमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः // 7 22 // परविवाहकरणेत्वरपरिगृहीतापरिगृहीतागमनानङ्गक्रीडातीव्रकामाभिनिवेशाः // 7-23 // क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिकमाः // 7-24 // उधिस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तर्धानानि // 7-25 // आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलप्रक्षेपाः // 7-26 / / कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगाधिकत्वानि // 7-27 // योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि // 7-28 // अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादाननिक्षेपसंस्तारोपक्रमणानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि // 7 29 // सचित्तसम्बद्धसंमिश्राभिषवदुष्पक्वाऽऽहाराः // 7-30 // सचित्तनिक्षेपपिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिकमाः / / 7-31 // जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानकरणानि / / 7-32 // अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम् // 7-33 // विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः // 7-34 // अष्टमोऽध्यायः मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः // 8-1 // सकाषायत्वाज्जीव: कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते // 8-2 // स बन्धः // 8-3 // Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org