SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहूर्तराज ] ग्रहमैत्री प्रकार एवं गुण बोधक सारणी - र वर सूर्य मंगल | बुध । गुरु शुक्र शनि I ग्रहा सूर्य चन्द्र | एकाधिपतित्व | परस्पर मैत्री | परस्पर मैत्री | मित्र समता | परस्पर मैत्री | परस्पर वैर | परस्पर वैर ५ गुण । ५ गुण | ५ गुण | ४ गुण ५ गुण | ० गुण ० गुण | परस्पर मैत्री | एकाधिपत्व | सम मित्रता | मित्रता वैर | सम मित्रता | समशत्रुता सम शत्रुता ५ गुण । ५ गुण | ४ गुण १ गुण ४ गुण ॥ गुण | ॥ गुण परस्पर मैत्री | सम मित्रता | एकाधिपतित्व | समशत्रुता परस्पर मैत्री | सम समता | सम शत्रुता ५ गुण | ४ गुण | ५ गुण | ॥ गुण । | ५ गुण | ३ गुण ॥ गुण | मित्र समता | मित्र शत्रुता | समशत्रुता । एकाधिपतित्व सम शत्रुता | परस्पर मैत्री | सम मित्रता ४ गुण । १ गुण | ॥ गुण । ५ गुण | ॥ गुण । ५ गुण ४ गुण मंगल | परस्पर मैत्री | मित्र समता | परस्पर मैत्री | सम शत्रुता | एकाधिपतित्व | सम शत्रुता | सम समता ५ गुण । ४ गुण । ५ गुण | १/२ गुण | ५ गुण ॥ गुण ३ गुण परस्पर वैर | सम शत्रुता | सम समता | परस्पर मैत्री | सम शत्रुता | एकाधिपतित्व | परस्पर मैत्री ० गुण । ॥ गुण ३ गुण | ५ गुण ॥ गुण | ५ गुण ५ गुण | परस्पर वैर | सम शत्रुता | सम शत्रुता | समता मैत्री | सम समता | परस्पर मैत्री | एकाधिपतित्व ० गुण । ॥ गुण । ॥ गुण | ४ गुण | ३ गुण | ५ गुण । ५ गुण शनि ६. गणकूट - (मु.चि.वि.प्र. श्लोक २९ वाँ) रक्षोनरामरगणा क्रमतो मघाहिवस्विन्द्रमूलवरुणानलतक्षराधाः । पूर्वोत्तरात्रयविधात्यमेशभानि, मैत्रादितीन्दुहरिपौष्णमरुल्लघूनि ॥ अन्वय - क्रमतः मघाहिवस्विन्द्रमूलवरुणानलतक्षराधाः, पूर्वोत्तरात्रयविधातृयमेशभानि, मैत्रा दितीन्दुहरिपौष्णम रुल्लधूमि रक्षोनरामरगणाः (कथ्यन्ते)। अर्थ - नक्षत्रों के गण ३ होते हैं - राक्षस मनुष्य और देव। ये इस प्रकार से हैं। मघा, आश्लेषा, धनिष्ठा- ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, कृत्तिका, चित्रा और विशाखा इन नक्षत्रों का गण राक्षस है। तीनों पूर्वा (पू.फा.पू.षा. और पू.भा.) और तीनों उत्तरा (उ.फा., उ.षा., उ.भा.) रोहिणी, भरणी और आर्द्रा ये नक्षत्र नरगणी हैं तथा अनुराधा, पुनर्वसु, मृगशिरा, श्रवण, रेवती, स्वाती और लघुसंज्ञक नक्षत्र (अश्विनी हस्त और पुष्य) ये नक्षत्र देवगणी हैं। गणफल - कश्यप मत से - स्वगणे चोत्तमा प्रीतिर्मध्यमामरमर्त्ययोः । मर्त्यराक्षसयोर्वैरम् असुरामरयोरपि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy