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[ मुहूर्तराज
ग्रहमैत्री बोधक सारणी
ग्रह → मित्रादि
मंगल
गुरु ,
शुक्र
शनि
राहू
و
शु. | सू.
मित्र
هو
सम
शु. श.
اهي
चं.
च.
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ग्रहमैत्री में गुणविभाग - दैवज्ञ मनोहर के मत में -
ग्रहमैत्रम् सप्तविधं, गुणाः पञ्च प्रकीर्तिताः । तत्रैकाधिपतित्वे च मित्रत्वे गुण पंचकम् । चत्वारः सममित्रत्वे द्वयोः साम्ये त्रयो गुणाः। मित्रवैरे गुणश्चैकः समवैरे गुणार्धकम् ॥
परस्परं खेटवैरे गुणशून्यं विनिर्दिशेत् । अर्थ - ग्रहमैत्री सात प्रकार की है - यथा -
१. एकाधिपतित्व मैत्री, २. परस्पर मैत्री, ३. सममैत्री, ४. समसमता, ५. मित्र वैर, ६. समवैर, ७. परस्पर वैर। एकाधिपतित्व तथा परस्पर मैत्री हो तो ५ गुण, ग्रह परस्पर सम और मित्र हों तो ४. गुण, दोनों ही ग्रह परस्पर सम हों तो ३ गुण, परस्पर मित्र और वैरी हों तो १ गुण परस्पर सम और वैरी हों तो - आधा गुण, तथा दोनों ही ग्रह परस्पर वैरी हों तो गुण ० शून्य समझना चाहिए।
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