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मुहूर्तराज ]
[ २७ अर्थ - वर - वधु के जन्मनक्षत्रों की समान योनियाँ सम्पत्ति के लिए तथा उन दोनों के सदा मैत्रीभाव के लिए है। यदि योनियाँ भिन्न हो तो फल मध्यम है, पर योनियों में परस्पर वैर भाव शुभ नहीं होता। और भी - (अत्रि)
योनेरभावे नोद्वाहः कार्यः सतु वियोगदः । राशिवश्यं च यद्यस्ति कारयेनतु दोषभाक् ॥
अर्थ - योनि न मिलने पर विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि वह विवाह दम्पत्ति के लिए बिछोह कारक होता है। पर यदि राशि वश्यता हो तो दोष नहीं है। योनिकूट में गुणविभाग - दैवज्ञ मनोहर की दृष्टि में -
अष्टाविंशतिताराणां योनयः स्युश्चतुर्दश । मैत्रं चैवातिमैत्रं च विवाहे नरयोषितोः ॥ महवैरे च वैरे च स्वाभावे च यथा क्रमम् । मैत्रे चैवातिमैत्रे च खेन्दुद्वित्रिचतुर्गुणाः ॥ .
अर्थ - अट्ठाईस नक्षत्रों की १४ योनियाँ हैं, इनमें पाँच प्रकार से मित्रता एवं वैर हैं यथा - महावैर, वैर, स्वाभाविक वैर, मित्रता और अतिमित्रता। महावैर हो तो गुण • शून्य, वैर में गुण १ स्वाभाविक वैर में गुण दो, मित्रता में गुण ३ और अतिमित्रता में गुण ४ होते हैं। ५. ग्रहमैत्री - (मु.चि.वि.प्र. श्लोक २७, २८ वां) -
मित्राणि धुमणेः कुजेज्यशशिनः शक्रार्कजौ वैरिणौ , सौम्यश्चास्य समो, विदोर्बुधरवी मित्रे न चास्य द्विषद् । शेषाश्चास्य समाः कुजस्य सुहृदश्चन्द्रेज्य सूर्याः बुधः , शत्रुः शुक्रशनी समौ च शशभृत्सूनोः सिताहस्करौ ॥ मित्रे चास्य रिपुः शशी गुरुशनिक्ष्माजाः समा गीष्यते: , मित्राण्यर्ककुजेन्दवो बुधसितौ शत्रू समः सूर्यजः । मित्रे सौभ्यशनी कवेः शशिरवी शत्रू कुजेज्यौ समौ , मित्रे शुक्रबुधौ शनेः शशिरविक्ष्माजाः द्विषोऽन्यः समः ॥
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