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[ मुहूर्तराज अभिजित् की ग्राह्याग्राह्यता का विचार -
लांगले, कमठे, चक्रे फणिचक्रे त्रिनाडिके । अभिजिद् गणना नास्ति चक्रे खाजूंरिके तथा ॥
एकार्गलो दृष्टिपातः चाभिजिद् रहितानि वै । अर्थ - पंचशलाका एवं सप्तशलाका चक्र में अभिजिद् नक्षत्र ग्रहण किया जाता है । इसी प्रकार मुहूर्त चिन्तामणिकार ने एकार्गलदोष में उस अवस्था में अभिजिद् गणना की है जबकि खजूर चक्र में सूर्य नक्षत्र से चन्द्रमा विषम नक्षत्र पर स्थित हो।
हलचक्र, कमठचक्र, त्रिनाडीचक्र, फणिचक्र, खजूर चक्र तथा एकार्गल दृष्टिपातादि में अभिजित् की गणना नहीं की जाती। जन्म नक्षत्र विषय में कश्यप मत - -
नवानप्राशने चौले व्रतबन्धेऽभिषेचने ।
शुभदं जन्म नक्षत्रमशुभं त्वन्यकर्मणि ॥ अन्वय - नवान्नप्राशने चौले व्रतबन्धेऽभिषेचने जन्म नक्षत्रं शुभदं (भवति) अन्यकर्मणि तु अशुभम्।।
अर्थ - नवीन अन्न भक्षण, चौलकर्म, व्रतबन्ध, अभिषेक आदि में जन्मनक्षत्र शुभद है अन्य कार्यों में नहीं। जन्म एवं उपनाम के नक्षत्रों का विचार - - (व्य.प्र.)
विहाय जन्मभं कार्ये, नामभं न प्रमाणयेत् ।
जन्मभस्यापरिज्ञाने, नामभस्य प्रमाणता ॥ अन्वय - कार्ये जन्मभं विहाय नामभं न प्रमाणयेत्। जन्मभस्य अपरिज्ञाने (तु) नामभस्य प्रमाणता (अस्ति)।
किसी भी कार्य में यदि जन्मनक्षत्र ज्ञात न हो तो नामनक्षत्र की प्रमाणता है किन्तु यदि जन्म नक्षत्र का ज्ञान हो तो नाम नक्षत्र प्रामाणिक नहीं है। अतः मेलापक देखते समय -
द्वयोर्जन्मभयोमेलो, द्वयोर्नामभयोस्तथा ।
जन्मनामभयोर्मेलो न कर्तव्यः कदाचन ॥ अन्वय - द्वयोः जन्मभयोः मेलः तथा द्वयोः नामभयोः मेलः कर्तव्यः जन्मनामभयोर्मेलः कदाचन न कर्तव्यः।
अर्थ - अतः यदि दो व्यक्तियों का मेलापक करना हो तो उन दोनों के जन्म नक्षत्रों से अथवा जन्म नक्षत्र ज्ञानाभाव में दोनों के नाम नक्षत्रों से ही करना चाहिए। एक के नाम नक्षत्र और दूसरे के जन्मनक्षत्र से नहीं।
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