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मुहूर्तराज ]
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पंचक ज्ञान - (आ.सि.)
पंचके वासवान्त्यार्धात्तृणकाष्ठगृहोद्यमान् ।
याम्यदिग्गमनं शय्यां मृतकार्य विवर्जयेत् ॥ ___ अर्थ - धनिष्ठा के उत्तरार्ध से लेकर शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा खेती ये ४॥ नक्षत्र का समय अर्थात् कुंभ और मीन का चन्द्रमा, यह पंचक काल है। इसमें तृणकाष्ठादि संग्रह घर को ढांकना, दक्षिण दिशा में यात्रा, खाट की बुनाई एवं प्रेतकार्य आदि कार्य वर्जनीय हैं। पंचक फल - (व्यवहार सार में)
धनिष्ठा धननाशाय, प्राणध्नी शततारका । पूर्वायां दण्डयेद्राजा, उत्तरा मरणं धुवम् ॥
अग्निदाहश्च रेवत्यां, इत्येतत्पंचके फलम् । अर्थ - धनिष्ठा में धननाश, शतभिषा में प्राणनाशक पीड़ा, पूर्वाभाद्रपदा, में राजदण्ड, उत्तराभाद्रपद में मरण एवं खेती में अग्निदाह आदि उत्पात होते हैं। पुष्यनक्षत्र की प्रशंसा - (आ.सि.)
कार्य वितारेन्दुबलेऽपि पुष्ये, दीक्षां विवाहं च विनाविदध्यात् । पुष्यः परेषां हि बलं हिनस्नि, बलं न पुष्यस्य च हन्युरन्ये ॥
सिंहो यथा सर्वचतुष्पदानां तथैव पुष्यो बलवानुडूनाम् ॥ अन्वय - दीक्षां विवाहं च विना (किञ्चिदपि कार्यम्) वितारेन्दु बलेऽपि (समये) पुष्ये नक्षत्रे कार्यम् विदध्यात्। पुष्य परेषां बलं हिनस्ति हि, पुष्यस्य तु बलं केचिदपि न हन्युः। यथा सिंहः सर्वचतुष्पदानां (मध्ये) बलवान् तथैव सर्वोडूनाम् पुष्यः बलवान् अस्ति ।
अर्थ - पुष्य नक्षत्र में ताराबल तथा चन्द्रबल के न रहते हुए भी दीक्षा और विवाह के अतिरिक्त समस्त शुभ कार्य करणीय होते हैं, क्योंकि पुष्यनक्षत्र अन्य कुयोगों के बल का शमन करता है। किन्तु पुष्य के बल का अन्य योग शमन नहीं कर सकते। जिस प्रकार सिंह सर्वपशुओं में प्रधान एवं बलशाली है उसी प्रकार पुष्य सर्वनक्षत्रों में प्रधान एवं बलवान् है। नक्षत्रपाया ज्ञान एवं उसका फल -
आर्द्रादिदशभी रूप्यम् विशाखाचतुलौंहकम् ।
पूर्वादिसप्त ताम्रश्च रेवतीषटकहेमकम् ॥ __ अर्थ - आर्द्रादिदश नक्षत्रों का चांदी का पाया, विशाखादि चार नक्षत्रों का पाया लोहे का, पूर्वाषाढ़ा से सात नक्षत्रों का पाया ताम्र का तथा रेवती से छः नक्षत्रों तक पाया सोने का होता है। ____ फल - लौह पाये का शनि, स्वर्ण पाये का गुरु, चांदी पाये के चन्द्र और शुक्र, ताम्र पाये के अन्य ग्रह शुभ फलदायी होते हैं।
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