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________________ मुहूर्तराज ] दिणसुद्धि : दिनशुद्धि : पन्द्रहवीं शती में विद्यमान रत्नशेखरसूरि ने दिनशुद्धि नामक ग्रन्थ की प्राकृत में रचना की है। इसमें १४४ गाथाएं है। जिनमें रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि का वर्णन करते हुए तिथि, लग्न, प्रहर, दिशा और नक्षत्र की शुद्धि बताई गई है। ' काल संहिता : 'काल संहिता' नाम कृति आचार्य कालक ने रची थी, ऐसा उल्लेख मिलता है। वराहमिहिरकृत 'बृहज्जातक' (१६।१) की उत्पलकृत टीका में 'बंकलका' चार्यकृत 'बंकालकसंहिता' से दो प्राकृत पद्य उद्धृत किये गये। ‘बंकालकसंहिता' नाम अशुद्ध प्रतीत होता है। यह 'कालकसंहिता होनी चाहिये ऐसा अनुमान होता है। यह ग्रन्थ अनुपलब्ध है। कालकसूरि ने किसी निमित्त ग्रन्थ का निर्माण किया था, यह निम्न उल्लेख से ज्ञात होता है :पढमणुओगे कासी, जिणचक्किदसारचरियपुव्वभवे । कालगसूरि बहुयं लोगाणुओगे निमित्तं च ॥ गणहरहोरा : गणधरहोरा : 'गणहरहोरा' नामक यह कृति किसी अज्ञातनामा विद्वान ने रची है। इसमें २९ गाथाएं हैं। मंगलाचरण में 'नमिऊण इंदूभई' उल्लेख होने से यह किसी जैनाचार्य की रचना प्रतीत होती है। इसमें ज्योतिष विषयक होरासम्बन्धी विचार है। इसके ३ पत्रों की एक प्रति पाटन के जैन भंडार में है । [ ४०५ प्रश्नपद्धति : ‘प्रश्नपद्धति' नामक ज्योतिष विषयक ग्रन्थ की हरिश्चन्द्र गणि ने संस्कृत में रचना की है । कर्त्ता ने निर्देश दिया है कि गीतार्थचुडामणी आचार्य अभय देव सूरि के मुख से प्रश्नों का अवधारण कर उन्हीं की कृपा से इस ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ कर्त्ता ने अपने ही हाथ से पाटन के अन्नपाटक चार्तुमास की अवस्थिति के समय लिखा है। जोइसदार : ज्योतिषद्वार : 'जोइसदार' नामक प्राकृत भाषा की २ पत्रों की कृति पाटन के जैन भंडार में है इसके कर्त्ता का नाम अज्ञात है। इसमें राशि और नक्षत्रों से शुभाशुभ फलों का वर्णन किया गया है। जोइसचक्कबियार : ज्योतिषचक्रविचार : जैन ग्रन्थावली (पृष्ठ ३४७) में 'जोइसचक्कवियार' नामक प्राकृत भाषा की कृति का उल्लेख है। इस ग्रन्थ का परिमाण १५५ ग्रन्थाग्र है । इसके कर्त्ता का नाम विनयकुशल मुनि निर्दिष्ट है । १. यह ग्रन्थ उम्पाध्याय क्षमाविजयजी द्वारा संपादित होकर शाह मूलचन्द बुलाखीदास, बम्बई की ओर से सन् १९३८ में प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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