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________________ ४०४ ] ज्योतिष : ज्योतिष विषयक जैन आगम ग्रन्थों में निम्नलिखित अंगबाह्य सूत्रों का समावेश होता है। १. सूर्य प्रज्ञप्ति २. चन्द्र प्रज्ञप्ति २, ३. ज्योतिष्करण्डक े, ४. गणिविद्या। ज्योतिस्सार : ठक्कर फेरू ने “ज्योतिष्सार” नामक ग्रन्थ' की प्राकृत रचना की है। उन्होंने इस ग्रन्थ में लिखा है कि हरिभद्र, नरचन्द्र, पद्मप्रभसूरि, जउण, वराह, लल्ल, परासर, गर्ग आदि ग्रन्थकारों के ग्रन्थों का अवलोकन करके इसकी रचना (वि.सं. १३७२-७५ के आसपास) की है। चार द्वारों में विभक्त इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर २३८ गाथाएं हैं। दिन शुद्धि नाम द्वारा में ४२ गाथाएं हैं, जिनमें वार, तिथि, और नक्षत्रों में सिद्धियोग का प्रतिपादन है । व्यवहार द्वार में ६० गाथाएं हैं। जिनमें ग्रहों की राशि स्थिति, उदय, अस्त और वक्र दिन की संख्या का वर्णन है। गतिद्वार में ३८ गाथाएं हैं और लग्न द्वार में ९८ गाथाएं हैं। इनके अन्य ग्रन्थों के बारे में अन्यत्र लिखा गया है। विवाहपडल (विवाहपटल) : 'विवाह पडल' के कर्त्ता अज्ञात है। यह प्राकृत में रचित एक ज्योतिष विषयक ग्रन्थ है, जो विवाह के समय काम में आता है। इसकी उल्लेख 'निशीथ विशेषचूर्णि' में मिलता है। लग्नसुद्धि (लग्न शुद्धि) : 'लग्न सुद्धि' नामक ग्रन्थ के कर्त्ता याकिनी महत्तरासून हरिभद्रसूरि माने जाते हैं। परन्तु यह संदिग्ध मालुम होता है। यह 'लग्नकुण्डलिका' नाम से प्रसिद्ध है। प्राकृत की कुल १३३ गाथाओं में गोचरशुद्धि, प्रतिद्वारदशक, मास वार तिथि, नक्षत्र, योग शुद्धि, सुगणदिन, रजछन्नद्वार, संक्रांति, कर्कयोग वार नक्षत्र, अशुभयोग, सुगणार्क्षद्वार, होरा, नवांश, द्वादशांश, षडवर्गशुद्धि, उदयास्तशुद्धि इत्यादि विषयों पर चर्चा की गई है। ६ १. २. ३. ४. [ मुहूर्तराज ५. ६. सूर्य प्रज्ञप्ति के परिचय के लिये देखिए जैन साहित्य का वृहद् इतिहास का भाग २ पृष्ठ १०५ - ११० । चन्द्र प्रज्ञप्ति के परिचय के लिये देखिये वही पृष्ठ ११० । ज्योतिष्करण्डक के परिचय के लिये देखिए - भाग ३ पृष्ठ ४२३- ४२७ इस प्रकीर्णक के प्रणेता संभवतः पादलिप्ताचार्य है। गणिविद्या के परिचय के लिये देखिए भाग २, पृष्ठ ३५९ । इन सब ग्रन्थों की व्याख्या के लिये इसी इतिहास ( जैन साहित्य का वृहद् इतिहास) का तृतीय भाग देखना चाहिये । यह (रत्नपरीक्षादिसप्तग्रन्थसंग्रह ) में राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित है। यह ग्रन्थ उपाध्याय क्षमाविजयजी द्वारा सम्पादित होकर शाह मूलचन्द बुलाखीदास की ओर से सन् १९३८ में बम्बई से प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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