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________________ ४०६ ] भुवनदीपक : 'भुवनदीपक' का दूसरा नाम 'गहभावप्रकाश' है' इसके कर्त्ता आचार्य पद्मप्रभसूरि' है। ये नागपुरीय तपागच्छ के संस्थापक है । इन्होंने वि.सं. १२२१ में 'भुवनदीपक' की रचना की । यह ग्रन्थ छोटा होते हुए भी महत्वपूर्ण है। इसमें ३६ द्वार ( प्रकरण) है। १. ग्रहों के अधिप, २ . ग्रहों की उच्च निच्च स्थिति, ३ परस्पर मित्रता, ४. राहु विचार, ५. केतु विचार, ६. ग्रह चक्रों का स्वरूप, ७. बारह भाव, ८. अभिष्ट काल निर्णय, ९. लग्न विचार, १०. विनष्ट ग्रह, ११. चार प्रकार के राजयोग, १२. लाभ विचार, १३ लाभ फल, १४. गर्भ की क्षेमकुशलता, १५. स्त्रीगर्भ प्रसूति. १६. दो सन्तानों का योग, १७. गर्भ के महिने, १८. भार्या, १९. विषकन्या, २०. भावों ग्रह, २१. विवाह विचारणा, २२. विवाद, २३. मिश्रपद निर्णय, २४. पृच्छा निर्णय, २५. प्रवासी का गमनायमन, २६. मृत्यु योग, २७ दुर्गमंग, २८. चौर्यस्थान, २९. अर्धज्ञान, ३०. भरण, ३१. लाभोदय, ३२. लग्न का मासफल, ३३. द्रेवकाणफल, ३४. दोषज्ञान, ३५. राजाओं की दिनचर्या, ३६. इस गर्भ में क्या होगा? इस प्रकार कुल १७० श्लोकों में ज्योतिष विषयक अनेक विषयों पर विचार किया गया है। १. भुवनदीपक वृत्ति : 'भुवनदीपक वृत्ति' पर आचार्य सिंह तिलक सूरि ने वि.सं. १३२६ में १७०० श्लोक प्रमाण वृत्ति की रचना की है। सिंह तिलक सूरि ज्योतिष शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान थे। इन्होंने श्रीपति के 'गणिततिलक' पर भी एक महत्वपूर्ण टीका लिखी है। सिंह तिलक सूरि, विबूधचन्द्र सूरि के शिष्य थे। इन्होंने वर्द्धमान विद्याकल्प मंत्रराजरहस्य आदि ग्रन्थों की रचना की है। २. भुवनदीपक वृत्ति : मुनि हेमतिलक ने ‘भुवनदीपक' पर एक वृत्ति रची है। समय अज्ञात है । ३. भुवनदीपक वृत्ति : [ मुहूर्तराज देवज्ञ शिरोमणी ने 'भुवनदीपक' पर एक विवरणात्मक वृत्ति की रचना की है। समय ज्ञात नहीं है। ये टीकाकार जैनेतर है। ४. भुवनदीपक वृत्ति : किसी अज्ञातनामा जैन मुनि ने 'भुवनदीपक' पर एक वृत्ति रची है। समय अज्ञात है। १. ग्रहभावप्रकाशाख्यं शास्त्रमेतत् प्रकाशितम् । जगद्भावप्रकाशाय श्री पद्मप्रभसूरिभिः ॥ २. आचार्य पद्मप्रभसूरि ने 'मुनिसुर्वत चरित' की रचना की है, जिसकी वि.सं. १३०४ में लिखी गई प्रति जेसलमेर भंडार में विद्यमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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