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मुहूर्तराज ]
[३७९ अर्थ - (क) प्रश्न कालिक लग्न से ३ रे और २ रे भाव में क्रमश: गुरु एवं शुक्र हो तो परदेशी घर आएगा। तथा ये दोनों (गुरु एवं शुक्र) चतुर्थ भाव में स्थित हो तो परदेशी अतिशीघ्रतया घर आनेवाला है, ऐसा कहना चाहिए।
अर्थ - (ख) प्रश्न कालिक लग्न से अथवा चन्द्र से २ रे और १२ वें भावों में चन्द्रपुत्र (बुध) और भृगुपुत्र (शुक्र) हो तो परदेशी का मरण और शीघ्र आगमन नहीं अर्थात् परदेशी अति विलम्ब से आएगा। जय-पराजय, सन्धि विषयक प्रश्न-(बृहज्यौतिषसार)
कर्कटवृश्चिकघटधरभीना हिबुकोपगताः शुभैः दृष्टाः ।
शत्रोः पराजयकराः वृषाजचापैः प्रयाति रिपुः ॥ जय अथवा पराजय होगी ? ऐसे प्रश्न के उत्तर में प्रश्नसमयानुसार बनाई गई कुण्डली में यह देखें कि यदि चतुर्थ भाव में कर्क, वृश्चिक, कुंभ या मीन राशि हो और उस पर शुभग्रह दृष्टि हो तो शत्रु पराजय होगी, ऐसा फल कहना और यदि चतुर्थ भाव में वृष, मेष या धनु राशि हो तो शत्रु शीघ्र लौट जायगा ऐसा कहना चाहिए। तथैव
नवमाद्ये चक्रदले विज्ञेया यायितः तृतीया दै ।
पौराः शुभसंयुक्ते भागे विजयोऽ परे भङ्गः ॥ __ कुण्डली में ९ वें भाव से २ रे भाव तक के गृहों की राशियों को यात्री (चढ़ाई करने वाला) कहते हैं और ३ रे भाव से ८ भाव तक के गृहों की राशियों को स्थायी (अपने स्थान में रहने वाला) कहते हैं, यदि यात्री राशियों में शुभग्रह हो तो चढ़ाई करने वाले की और स्थायी राशियों में शुभग्रह हो तो जिस पर चढ़ाई की जाए उसकी जय होती है, इसके विपरीत होने पर पराजय। तथा दोनों प्रकार की राशियों में शुभ-पाप दोनों प्रकार के ग्रह हो तो परस्पर सन्धि होती है, ऐसा फल कहना चाहिए। तथा च
सौम्यैर्नरराशिगतैर्लग्ने लाभे व्ययेऽथवा सन्धिः ।
भवति नृपाणां प्रवदेत् अतोऽन्यथा विपर्ययो ज्ञेयः ॥ अर्थ - नरराशि में (मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्ध और कुंभ) स्थित होकर शुभग्रह यदि लग्न में ग्यारहवें स्थान में अथवा बारहवें स्थान में हो तो चढ़ाई करने वाले एवं जिस पर चढ़ाई की जाय उन दोनों में सन्धि हो जाती है अन्यथा (यदि ऐसा न हो तो) उन दोनों में आपस में शत्रुता बनी रहेगी, ऐसा फल कहना चाहिए। रोगी के सम्बन्ध में सुख-दुःख का प्रश्न
उपचयसंस्थश्चन्द्रः सौम्या केन्द्रत्रिकोण निधनस्थाः । लग्ने वा शुभदृष्टे सुखितस्तत्रातुरो वाच्यः ॥ परिपूर्णतनुश्चन्द्रो लग्नोपगतो निरीक्षितो गुरुणा । गुरुशुक्रौ केन्द्रे वा निपीडितार्तोऽपि सुखितः स्यात् ॥
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