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________________ ३७८ ] प्रश्नलग्नगत राशि पर पाप एवं शुभग्रह दृष्टिफल - (बृहज्यौतिषसार) द्विपदं चतुष्पदं वा भवनं, लग्नोपगं ग्रहः पापः । पश्यति तन्नाशकरो ज्ञेयः सौम्यौ बिवृद्धिकरः ॥ अर्थ - यदि प्रश्न लग्न द्विपद ( मिथुन, कन्या, तुला, धनु पूर्वार्ध एवं कुंभ) अथवा चतुष्पद (मेष, वृष, सिंह, धनु का उत्तरार्ध एवं मकर का पूर्वार्ध) राशीय हो और उस पर यदि पापग्रहदृष्टि हो तो शुभफलनाश और सौम्यग्रहदृष्टि हो तो शुभफलवृद्धि होती है । प्रश्न से कार्य सिद्धि योग - (बृहज्यौतिषसार) तथा च लग्नाधिपतिः केन्द्रे तन्मित्रं व व्याष्टकेन्द्रेभ्य । अन्यत्र गताः पापाः तत्रापि शुभं वदेत्प्रश्ने ॥ पञ्चम नवभोयगतै बुधगुरुशुकै र्यथेप्सितावाप्तिः । त्रिषष्ठलाभोपगतैः क्षितिसुतरवि सूर्यस्तद्वत् । अर्थ - यदि प्रश्नलग्नपति अथवा उसका मित्रग्रह केन्द्र में हो एवं पापग्रह ८, १२, १, ४, ७, १० से भिन्न स्थानों में हो तो कार्य सिद्धि होती है । तथैव यदि बुध, गुरु एवं शुक्र ये तीनों पञ्चम या नवम स्थान में हो और मंगल, रवि और शनि ३, ६, ११ वें स्थानों में हो तो भी कार्यसिद्धि कहनी चाहिए । प्रश्न से अशुभफल योग - (बृहज्यौतिषसार ) Jain Education International पापैर्लग्नोपगतैः शरीरपीडां विनिर्दिशेत् कलहय । सुखसंस्थैः सुखनांश गृहभेदं बन्धुविग्रहं कथयेत् ॥ अस्ते गमनविरोधः कर्मस्थे कर्मण्यं नाशः । शुभदृष्टेः संयोगात् प्रष्टुः कृच्छ्राद् वदेत् सिद्धिय् ॥ अर्थ प्रश्नलग्न में यदि पापग्रह हो तो प्रश्नकर्त्ता को शारीरिक पीड़ा एवं मानसिक व्यथा हो ऐसा कहें। यदि पापग्रह चतुर्थभाव में हो तो सुख नाश, घर में फूट और बन्धुओं में कलह होता है। यदि यात्राविषयक प्रश्न कुण्डली में सप्तमस्थान में पापग्रह हो तो यात्रा में विघ्न पड़े दशमस्थान में हो तो कार्यों में हानि हो परन्तु यदि उन पापग्रहों पर शुभग्रहों की दृष्टि हो तो प्रश्नकर्त्ता को अथक परिश्रम करने पर सामान्य सिद्धि मिल सकती है। परदेशी के आगमन सम्बन्धी प्रश्न - ( बृहज्यौतिषसार) (क) दुश्चिक्यधनसमेतौ बन्धुपगतावेतौ गुरुशुक्रावागर्म गृहप्रवेशं (ख) लग्नाद्दिद्वदिशगौ [ मुहूर्तराज नृणाम् । क्षणात् कुरुतः ॥ चन्दाद् वा चन्द्रपुत्रभृगुपुत्रो । मरणं लघ्वागमनं नास्तीति विनिर्दिशेत् प्रष्टुः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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