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________________ २६८ ] [ मुहूर्तराज इस प्रकार स्थानीय सूर्योदय समय एवं स्थानीय इष्ट समय निकालकर स्थानीय इष्ट समय में से स्थानीय सूर्योदय समय क्रण करके शेष रहे घं. मि. को २॥ से गुणित करने पर इष्ट घटी पलें ज्ञात हो जाती हैं। इष्ट घटीपल साधन की अन्य भी कई प्रक्रियाएँ शास्त्रों में वर्णित है परन्तु यह प्रक्रिया सरलतम है। अब हमें इसी इष्ट के आधार पर सूर्यादिग्रहों का लग्न एवं षड्वर्गीय ग्रहस्थिति का स्पष्टीकरण करना है। सूर्यस्पष्टीकरण प्रत्येक पञ्चाङ्गों में प्रतिदिन सूर्योदय समय के आधार पर अर्थात् % इष्ट से सूर्य राश्यादि विकलापर्यन्त लिखा रहता है तथा उसके नीचे उसकी गति कलाविकलात्मक या घटीपलात्मक भी लिखित रहती है। इष्ट घटीपलों को गोमूत्रिका विधि से लिखकर उसके नीचे सूर्य की गति की घटीपलों को लिखकर गुणा करना पड़ता है। घटी x घटी = पल, घटी x पल = विपल और पल x पल = प्रति विपल होते हैं। फिर प्रति विपलों में ६० का भाग लगाकर विपलें बनाई जाती हैं और विपलों में ६० का भाग देकर पलें। यदि ६० का भाग देने पर शेष ४५ या इससे अधिक ५९ तक रहें तो लब्धि में एक और बढ़ा दिया जाता है। अब इसकी प्रक्रिया देखें इष्ट ११ ग. ४० पल ४० सूर्यगति x ५७ घ. ५७ x ६२७ प. ४२ प. ६०) ६६९ प. (११ घ. x ५७ २८० २००x २२८० वि. १५ २२९५ ६६० x २३ प. २३ २३ x २५३ वि. २२९५ ६०) २५५८ वि. (४२ प. x २३ १२० ८० x ६०) ९२० प्र.वि. (१५ ल.वि. ९०० २० २४० १४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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