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________________ मुहूर्तराज ] [२६९ सूर्य की गति एवं इष्ट की घटीपलों को गुणित करने पर फल प्राप्त हुआ ११ घ. ९ प. इसे सूर्य राश्यादि ३।१४।५१।२४ में जोड़ने पर ३।१५।२।३३ यह श्रा. शु. १२ रविवार का इष्ट ११ घ. ४० पल का सूर्य स्पष्ट हुआ। ___ भौमादि राहुपर्यन्त ग्रहस्पष्टीकरण की विधि वैसे तो सूर्यस्पष्टीकरण ही भांति है, अन्तर केवल यही है कि सूर्य में जो गोमूत्रिका विधि से गुणनफल घटीपलात्मक आता है वह भौमादिसाधन में १ मास में चार अंश घटी पलात्मक आता है, क्योंकि सूर्य तो प्रतिदिन के % इष्ट से सिद्ध पंचांगों में लिखा रहता है परन्तु भौमादि १ मास में चार बार एक-एक अवधि में जिसे प्रस्तार भी कहते हैं % इष्ट से गणित कर लिखित रहते हैं अतः इष्ट दिन के भौमादिस्पष्टीकरण हेतु इष्टदिन की संख्या एवं इष्ट घटीपलें तथा समीपतरवर्ति प्रस्तार दिन की संख्या एवं % इष्ट घटीपलों का परस्पर योग या अन्तर करके दिन घटीपलात्मक रूप जिसे चालक भी कहते हैं निकालना पड़ता है। चालक की विधि निम्नांकित हैचालक विधि गोमूत्रिका गुणनफल का ग्रहराश्यादि में योगान्तर यदि इष्ट दिन की समीपवर्ती अवधि का दिन इष्ट दिन से पूर्व हो तो इष्टदिन तथा इष्ट घटीपलों में से प्रस्तारदिन एवं घटीपलों को घटाया जाता है, शेष जो ३ संख्याएं रहती हैं वह धनात्मक चालक है। और यदि इष्ट दिन की समीपवर्ती अवधि का दिन इष्टदिन के बाद में हो तो अवधि के दिन के वार की संख्या एवं अवधि के ०१० इष्टघटी पलों में इष्टदिन की वारसंख्या एवं इष्टघटीपलों को घटाया जाता है शेष जो रहता है वह ऋणात्मक चालक कहा जाता है। इस प्रकार चालक बनाकर उसे गोमूत्रिका में लिखकर भौमादि ग्रहों की गति से गुणा करके सूर्यास्पष्टीकरणविधिवत् अनुपलों को विपलों में और विपलों को पलों में तथा पलों को घटीपलों में परिवर्तित करना पड़ता है इन ग्रहों के साधन करते समय गोमूत्रिका के प्रथमखण्ड में विपलों में ६० का भाग लगाकर शेष पलों को सूर्य की भांति त्यागा न जाकर फल में ग्रहण किया जाता है। फल निकल जाने पर यदि चालक धन हो और भौमादिग्रह जो मार्गी हो तो उनकी राश्यादि संख्याओं में फल को जोड़ा जाता है और यदि ग्रह वक्री हो तो घटाया जाता है, तथा चालक ऋण हो और भौमादिग्रह मार्गी हो तो भौमादिराश्यादि में से फल घटाया जाता है और वक्री हो तो जोड़ा जाता है ततः वह ग्रह स्पष्ट हो जाता है। चूंकि राहु और केतु सदा वक्री रहते हैं अतः उनको साधते समय आए हुए फल को धन चालक हो तो ग्रहराश्यादि में से घटाना तथा ऋण चालक हो तो ग्रहराश्यादि में फल को जोड़ना पड़ता है। उदाहरणार्थ- (भौभस्पष्टीकरण) हमारा इष्ट श्रावणशुक्ला १२ रविवार है तथा इष्टघटी ११ एवं पलें ४० हैं चूंकि द्वादशी की समीपतरवर्तिनी तिथि पूर्णिमा है जिसके प्रस्तार में भौमादि ग्रह % इष्ट के साधित लिखे हैं अब हम उक्त विधि से चालक बना रहे हैं पूर्णिमा को वार बुध है और इष्ट % है अतः बुध की संख्या ४ हुई (क्योंकि यहाँ वारगणना रवि से की जाती है) अतः ४।०।० में से इष्ट दिन रवि की संख्या १ इष्ट घटी ११ और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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