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________________ २५० ] [ मुहूर्तराज कतिपय अन्य शुभ लग्न कुण्डली के योग-(आ.सि.) आनन्द१ जीवर नन्दन३ जीमूत४ जय५ स्थिरा६ मृता योगाः । ज्ञगुरुसितैः प्रत्येकं विकत्रिकैश्चापि लग्नगतैः॥ अन्वय- ज्ञगुरुसितैः (बुधगुरुशुक्रै;) प्रत्येकं (केवलम् एक: बुध: एक: गुरु: एक: शुक्रो वा लग्नगते: (लग्नकुण्डल्या लग्नराशौ स्थितैः) क्रमश: आनन्दः, जीव:, नन्दनः, जीमूतः, जयः, स्थिर: अमृत: च योगा: शुभफलदा: भवन्ति । अयमाशय:- लग्नकुण्डल्यां स्थितेत बुधेन आनन्दाख्य, गुरुणा जीवाख्य:, शुक्रेण नन्दनाख्य:, बुधगुरुभ्या जीमूत:, बुध शुक्राभ्यां जयाख्यः, गुरुशुक्राभ्यां स्थिर: तथा च बुधगुरुशुक्रे: त्रिभिः लग्नस्थितै: अमृताख्य: योग: भवति । अर्थ- यदि लग्नकुण्डली में लग्नराशि में बुध हो तो आनन्द नामक, गुरु से जीव नामक, शुक्र से नन्दन नामक, बुध एवं गुरु दोनों से जीमूत नामक बुध एवं शुक्र दोनों से जय नामक, गुरु एवं शुक्र दोनों से स्थिर नामक एवं बुध गुरु तथा शुक्र तीनों के लग्नराशि में रहते अमृत नामक योग बनता है। स्पष्टता के लिए नीचे सात कुण्डलियाँ दी जा रही हैं। |आनन्दयोगः।। १. ॥जीवयोगः।।२ नन्दनयोगः॥३ द्वितीय / द्वादश/ द्वि. / द्वादश/ द्वितीय / द्वादश । एका.| तृतीय एका. तृतीय तृतीय लय X एका. ( चतुर्थ X दशम चतर्थ > दशम X चतुर्थ दशम पञ्चम ममम नवम | पञ्चम सप्तम नवम | पञ्च सप्तम नवम /अष्टम /पष्ट अष्टम षष्ठ अष्टम ॥जीमूतयोगः।। ४ ॥जययोगः।। ५ स्थिरयोगः।।६ द्वितीय/. द्वादश/ द्वि. / द्वादश द्वादश तृतीयX लग्न Xएका. तृतीयX लग्न X एका. तृतीयX लग्न Xएका द्वितीय चतर्थ X दशम K चतुर्थ X दशम K चतुर्थ ) दशम सप्तम X नवम | पञ्चम सप्तम नवम | पञ्च सप्तम नवम अष्टम अष्टम षष्प अष्टम ॥अमृतयोगः।। ७ द्वितीय द्वादश तृतीय एका. चतुर्थ X दशम पञ्चम सप्तम नवम अष्टम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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