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________________ मुहूर्तराज [ २४९ में चन्द्र हो तो कूर्म योग और बारहवें में शनि आठवें में चन्द्र एवं लग्न में सूर्य हो तो मुशल योग बनता है, ऐसा विद्वानों का कथन है। स्पष्टता के लिए कुण्डलियाँ प्रस्तुत हैं - | १३ ।।गजयोग।। १४ ।।कुठारयोग।। १५ ॥कूर्मयोग।। १६ ॥मुशलयोग।। उपर्युक्त सोलह कुण्डलियों में से हर्षयोग वाली कुण्डली के अतिरिक्त १५ कुण्डलियों लग्नादिक राशियाँ कल्पित हैं । सजन विद्ववृन्द यहाँ स्थानविशेषता समझें, अर्थात् अमुकामुक स्थानों में तत्तद्ग्रह स्थिति से अमुकामुक योग बनते हैं जो कि शुभ कार्यों में शुभाशुभ फल देते हैं। उपर्युक्त योगों की शुभाशुभता - (आ.सि.) एम्य: श्रीवत्सपूर्वाः षट् पूर्वे सर्वेषु कर्मसु । श्रेयस्तमा धनुर्मुख्यास्तवन्यथा स्युः षडुत्तरे ।। अन्वय - एभ्यः (पूर्वोक्तद्वादशयोगेभ्य:) पूर्वे प्रथमोक्ता षड़ योगा: सर्वेषु कर्मसु श्रेयस्तमा: ज्ञेया, धनुर्मुख्यास्तु षडुत्तरे योगा: अन्यथा (विरुद्धफलदातार:) स्युः ।। अर्थ - इन बारह योगों में से प्रथम के छ: योग ( ) समस्त शुभकार्यां, में कल्याणप्रद हैं । अन्तिम छ: योग (धनु आदि) तो विपरीत फलदायी हैं अर्थात् विघ्नकारी हैं। यहाँ कुछ श्रीपूर्वभद्र के विचार - (प्रा.) उदयठमगे मम्मं१ नवमपञ्चमे क्रूरकण्टयं २ भणियं । दशमचरत्थे सल्लं३ क्रूरा उदयत्थितं छिदं ।। मम्म दोसेण मरण कण्टयदोसेण कुलक्खओ होइ। सल्लेण रायसत्तू छिद्दे पुत्तं विणासेइ ।। अर्थात् - किसी भी कार्य की लग्न वेला में यदि लग्न एवं अष्टम में क्रूर ग्रह स्थित हो तो “मर्म" नामक दोष, नवें पाँचवें हो तो "क्रूरकण्टक", दसवें और चौथे हो तो “शल्य'दोष, और लग्न में हो तो छिद्र नामक दोष होता है। मर्म दोष से शुभकार्यकर्ता का मरण होता है अथवा उसे अपमादि सहन करने पड़ते हैं। कष्टक दोष कुलक्षयकारी है। शल्य दोष में राजा अथवा बड़े आदमियों से अकारण शत्रुता हो जाती है। और छिद्र दोष से पुत्र का विनाश होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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