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________________ मुहूर्तराज ] [२२१ ___अर्थ :- नृपति की यात्रानिवृत्ति पर यदि राजा अपने भवन में प्रवेश करना चाहे, अथवा कोई अन्य व्यक्ति अपने नूतन गृह में प्रवेश करना चाहे तो उसे उत्तरायण में भी ज्येष्ठ माघ फाल्गुन या वैशाखमास में तथा कृत्तिकादि ७-७ दिग्द्वार नक्षत्रों में भी मृदुसंज्ञक (मृगशिर, रेवती, चित्रा और अनुराधा) तथा ध्रुवसंज्ञक (तीनों उत्तरा और रोहिणी) नक्षत्रों के होते ही तथैव प्रवेशकर्ता की जन्मराशि एवं जन्मलग्न से तृतीय षष्ठ दशम और एकादश क्रम गत राशि के लग्न में अथवा स्थिरराशिलग्न में ही प्रवेश करना चाहिए। सौम्यायन में गृहप्रवेशार्थ वसिष्ठ एवं नारद मत "अथ प्रवेशो नवसद्मनश्च सौम्यायने जीवसिते बलाढ्ये ।" अर्थात् - उत्तरायण में तथा गुरु और शुक्र की उदितावस्था में नवगृह में प्रवेश करना शुभ है। और नारद भी “अथ सौम्यायने कार्य नववेश्मप्रवेशनम् । राज्ञां यात्रानिवृत्तौ................ ऐसा कथन करके सौम्यायान अर्थात् रवि के उत्तरायणगत रहते गृहप्रवेश का निर्दश करते हैं। उपर्युक्त “सौम्यायने” इस श्लोक में रवि के उत्तरायण को बतलाकर भी ज्येष्ठ माघ फाल्गुन और वैशाख मासों के नाम दिए हैं, जबकि ये मास भी उत्तरायण गत ही हैं। इससे यह समझना चाहिए कि गृहप्रवेश में उत्तरायण सूर्य रहते हुए भी ये चान्द्रमास ग्राह्य है। इन मासफलों को वसिष्ठ की उक्ति में जानिए माघेऽर्थलाभः प्रथमप्रवेशे पुत्रार्थलाभ खलु फाल्गुने च । चैत्रेऽर्थहानिर्धनधान्य लाभो वैशाखमासे पशुपुत्र लाभः ॥ ज्येष्ठे च मासेषु परेषु नूनं हानिप्रदः शत्रुभयप्रदश्च । शुक्ले च पक्षे सुतरां विवृद्ध्ये कृष्ण चे यावद्दशमी च तावत् ॥ अन्वय :- माघे गृहप्रवेशे कृते गृहपतेरर्थलाभ: स्यात्, फाल्गुने, पुत्रार्थलाभ: भवेत्, चेत्रेऽर्थहानिः वैशाखमासे धनधान्यलाभः, ज्येष्ठे च पशुपुत्र लाभ: स्यात्। परेषु एतदतिरिक्तषु सौभ्यायनमासेषु पौष चैत्रादिषु गृहप्रवेशः नूनं हानिप्रदः शत्रुभयप्रदश्च भवति। अर्थ :- माघ मास में गृहप्रवेश करने से गृहपति को धनलाभ, फाल्गुन में पुत्र एवं धन का लाभ मिलता है। चैत्र मास में प्रवेश करने से धनहानि होती है, वैशाख में धनधान्य प्राप्ति एवं ज्येष्ठ में पशु एवं पुत्र लाभ होता है। अन्य अवशिष्ट मासों में (पौष चैत्रादि में) किया गया गृहप्रवेश हानिकारक एवं शत्रुभयदायक होता है। शुक्लपक्ष में गृहप्रवेश से विशेष वृद्धि होती है और कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि पर्यन्त गृहप्रवेश करना शुभफलद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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