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[ मुहूर्तराज वसिष्ठ ने गृहप्रवेश में सौरमासों को बतलाकर भी उन्हें दोषदायी कहा है, यथा
मृगादिषड्राशिषु संस्थितेऽर्के नवप्रवेशः शुभदः सदैव ।
कुम्भं विनाडन्येष्वपि केचिदूचुः न सौरभिष्टं खलु सन्तिवेशे । अर्थात् - मकर से मिथुन तक सूर्य के रहते नूतनगृहप्रवेश सदैव शुभकारी है परन्तु कुम्भ के सूर्य में प्रवेश निषिद्ध है।
कुछेक आचार्यों ने कर्कादिषड्ाशियों में सूर्य के रहते नवगृहप्रवेश बतलाया है, पर उनका यह कथन द्वन्द्वाभयप्रवेश और सुपूर्वप्रवेश के लिए ही है अपूर्व प्रवेश के लिए नहीं है। और अन्त में वसिष्ठ का मत है कि प्रवेश में सौरमासों को न लेकर चान्द्रमासों का ही ग्रहण करना चाहिए तात्पर्य यह हुआ कि नवप्रवेश (अपूर्वप्रवेश) में तो ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन और वैशाख ही ग्राह्य है और द्वन्द्वाभय तथा सुपूर्वप्रवेश में अन्य मास भी ग्राह्य है। ज्योति: प्रकाश में
गृहारंभोदितैर्मासै र्धिष्ण्यै वरैिविशेद् गृहम् ।
विशेद् सौभ्यायने हवें तृणागारं तु सर्वदा ॥ अन्वय :- गृहारंभोतिदैः (गृहारंभप्रकरणोक्तैः) मासै:धिष्ण्यैः नक्षत्रैः सद्भिः सौभ्यायने हर्म्यम् (पाषाणेष्टिकानिर्मितम् नवोत्थापितं च) विशेत्। तृणागारं (तृणकाष्ठनिर्मितम्) तु सर्वदा तस्य कृते मासनक्षत्रादिप्रतिबधो नास्ती त्यर्थः । गुरुमत भी
कुलीर कान्यकाकुंभे दिनेशे न विशेद् गृहम् ।
ग्रामं वा पत्तनं वापि नगरं वा नराधिय । अर्थात् - कर्क, कन्या एवं कुंभ राशिगत सूर्य के होते नूतनगृहप्रवेश नहीं करना चाहिए तथैव ग्राम में एवं नगर में भी उक्त संक्रान्तियों में प्रवेश वर्जित है।
प्रवेश में उन नक्षत्रों को ही लेना चाहिए, जो कि मृदुसंज्ञक और ध्रुवसंज्ञक होते हुए भी उसी दिग्द्वार के हों, जिस दिशा की ओर गृह का मुख प्रवेशद्वार हो। __ वसिष्ठ ने भी दिग्द्वारीय नक्षत्रों में ही तत्तदिग्द्वार वाले घरों में प्रवेश करने का कहते हुए त्रिविध प्रवेशार्थ कतिपय नक्षत्रों का विधान किया है
चित्रोत्तरा धातृशशांकमित्र वस्वन्त्यवारीश्वरभेषु नूनम् ।
आयुर्धनारोग्य सुपुत्रपौत्रसत्कीर्तिदः स्यात् त्रिविध प्रवेशः ॥ अर्थ :- चित्रा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिर, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवती और शततारका इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में किया गया तीनों प्रकार का प्रवेश आयुष्य, धन, स्वास्थ्य, सुपुत्रपौत्र एवं सत्कीर्तिदायक होता है।
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