SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहूर्तराज ] [२०९ इस प्रकार गृहारम्भ के लिए विस्तृतरूपेण बतलाने के उपरान्त भवन बनवाते समय भवन के विभिन्न प्रकोष्ठों को कौनसी दिशा में बनवाना चाहिए और गृह कूप किस दिशा में खुदवाना शुभ है इस विषय में बतलाया जा रहा है-प्रथमतः गृह कूप के विषय में गृहकूप की दिशानुसार स्थिति के फल-(मु.चि.वा.प्र. श्लो. २० वाँ) कूपे वास्तोर्मध्यदेशेऽर्थशस्त्वैशान्यादौ पुष्टिरैश्वर्य वृद्धिः । सूनो शः स्त्रीविनाशो मृतिश्च सम्पत्पीडा शत्रुतः स्याच्य सौख्यम् ॥ अन्वय :- वास्तोः (गृहस्य) मध्यदेशे (मध्यभागे) कूपे कृते अर्थनाश: स्यात् अथ ऐशान्यादौ (ईशानत आरम्भ उत्तरं यावत् अष्टसु दिक्षु) क्रमशः पुष्टिः, ऐश्वर्यवृद्धिः, सूनो शः, स्त्रीविनाशः, मृतिः, सम्पत शत्रुनः, पीडा, सौख्यं च स्यात् । अर्थ :- भवन के मध्यभाग में कूपखनन से अर्थनाश, ईशान में कूपखनन से पुष्टि, पूर्व में ऐश्वर्य वृद्धि, अग्निकोण में खनन से पुत्रनाश, दक्षिण में कूपखनन से स्त्रीविनाश, नैऋत्य में वैसा करने पर मृत्यु पश्चिम में कूपखनन से सम्पत् (धनप्राप्ति) वायव्य में खनन से शत्रु की ओर से पीड़ा और उत्तर में कूप खनन से सुखप्राप्ति इत्यादि फल प्राप्त होते हैं। - गृहकूप की उपयुक्तानययुक्तदिशाएँ एवं तत्फल सारणी - ईशान ० पुष्टि आग्नेय ० पुत्रनाश ० ऐश्वर्यवृद्धि उत्तर ० सौख्य मध्यभाग ० वित्तनाश दक्षिण ० स्त्रीनाश नैर्ऋत्यु वायव्य • शत्रुपीडा पश्चिम ० सम्पत्तिलाभ ० मृत्यु भवन में अन्यान्य प्रकोष्ठों की दिग्विदिग्-(मु.चि.वा.प्र. श्लो. २१ वाँ) स्नानाग्नि कशयनास्त्रभुजश्च धान्यभाण्डार दैवतगृहाणि च पूर्वतः स्युः । तन्मध्यतस्तु मथनाज्यपुरीषविद्या , भ्यासाख्यरोदनरतौषध सर्वधाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy