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[ मुहूर्तराज __इसी प्रकार और कतिपय नक्षत्रों के साथ शुक्रवार के योग से प्रारम्भ किए गये भवनादि के विषय में भी नारद वाक्य देखिए
अश्विनी शततारासु विशाखा भाद्र चित्रके । धनिष्ठादितिसंयुक्ते तथा वै शक्रवासरे । गृहं नाटकशालाख्यं देवागारं कृतं शुभम् ।
तद्वेश्मनि प्रजातस्तु कुबेरसदृशो भवेत् ॥ अश्विनी, शतमिषक्, विशाखा, पू. भाद्रपद, चित्रा, धनिष्ठा और पुनर्वसु इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र और साथ में शुक्रवार के योग होने पर प्रारब्ध गृह, नाटकशाला और देवालय शुभावह होते हैं और वहाँ जिसका जन्म हो वह जातक कुबेर के समान भाग्यसम्पन्न होता है।
इस लग्नबल, नक्षत्र एवं वार योग से प्रारब्ध गृहादिकों की शुभावहता एवं सम्पन्नता के विषय में ऊपर विस्तृत विवेचन किया गया है अब कतिपय भवनारम्भ के अशुभफलदायी योगों का विवरण दिया जा रहा है यथागृहारम्भ में अनिष्टप्रद योग-(मु.चि.वा.प्र. श्लो. २७ वाँ)
"सारेः करेज्यान्त्यमघाम्बुमूलैः कौजेऽह्नि वेश्माग्निसुतार्तिदं स्यात्" अर्थात्- हस्त, पुष्य, रेवती, मघा, पूर्वाषाढा और मूल इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र पर मंगल हो उस नक्षत्र और मंगलवार के दिन अथवा इन नक्षत्रों में मंगल ग्रहाभाव में उक्त नक्षत्रों के साथ केवल यदि मंगलवार भी हो तो भी ऐसे योग में प्रारब्ध गृह में अग्नि पीड़ा एवं पुत्र को भी कष्ट होता है। और भी अशुभद योग-(मु.चि.वा.प्र.श्लो. २८ वाँ)
अजैकपादहिर्बुध्यशक्रमित्रानिलान्तकैः ।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुतं गृहम् ॥ अर्थात्- पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाती और भरणी इन नक्षत्रों में यदि किसी पर भी शनिग्रह हो और उस दिन इन नक्षत्रों में से किसी के भी साथ शनिवार हो अथवा उक्त नक्षत्रों पर शनि न भी हो केवलमात्र उक्त नक्षत्र दिन शनिवार ही हो तो भी प्रारब्ध गृह राक्षसों और भूतों के ही निवास योग्य होता है अर्थात् उस घर में राक्षस और भूत ही रहते हैं। गृहारम्भ में अशुभकारक नीच निर्बल एवं अस्तगत चन्द्रादि-(दैव.व.)
गृहिणीन्दौ गृहस्थोऽर्के गुरौ सौख्यं सिते धनम् ।
विबले नाशमोयाति नीचगेऽस्तंगतेऽपि च ॥ अर्थात्- गृहारम्भ के समय यदि चन्द्र निर्बल नीच या अस्त हो तो गृहिणी का, यदि सूर्य निर्बल नीचादि हो तो गृहपति का, गुरु निर्बल नीच या अस्त हो तो सुख का और यदि शुक्र निर्बल नीच या अस्त हो तो धन का नाश होता है।
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