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मुहूर्तराज ]
[१६७ ___ मंगलवार, सूर्यसंक्रमण के दिन, वृद्धियोग में, हस्तार्क में ऋण नहीं लेना चाहिए, क्योंकि ऐसे समय में लिया हुआ ऋण उस ऋणग्रहीता के वंशजों के द्वारा भी चुकाया जाना असंभव है। इसी प्रकार बुधवार को ऋण देना नहीं चाहिए। ऋण के विषय में ज्योतिः प्रकाशकार -
ऋणं भौमे न गृहणीयात् न देयं बुधवासरे ।
ऋणच्छेदं कुजे कुर्यात् संचयं सोमनन्दने ॥ अन्वय - भौमे ऋणं न गृहणीयात्, बुधवासरे ऋणं न देयम, कुजे ऋणच्छेदं कुर्यात् सोमनन्दने संचयं
कुर्यात्।
__अर्थ - मंगल को ऋण न ले और बुध को ऋण न दे। मंगल को ऋण चुकाए और बुध को संचय करें। सेवक द्वारा स्वामिसेवा का मुहूर्त - (मु.चि.न.प्र. श्लो. २६ वाँ)
क्षिप्रे मैत्रे वित्सिता}ज्वारे सौम्ये लग्नेऽके कुजे वा खलाभे ।
योनेमैंत्र्यां राशिपोश्चापि मैत्र्यां सेवा कार्या स्वामिनः सेवकेन ॥ अन्वय - क्षिप्ते (क्षिप्रसंज्ञकेषु हस्ताश्विनीपुष्याभिजिनक्षत्रेषु) मैत्रे (मृगशिरो रेवती चित्रानुराधासु) वित्सितार्केज्यवारे (बुधशुक्रसूर्यगुरुवारे) तथा सौम्ये (सौमाग्रहे) लग्ने (लग्नसंस्थे) अकें (सूर्य) कुजे वा (भौमग्रहे वा) खलाभे (दशमस्थाने एकादशस्थाने वा गते) योनेभैंत्र्यां (स्वामिसेवकयोः जन्मनक्षत्रयोः नामनक्षत्रयोः योन्योः मैत्र्यां मित्रभावे सति) राशियो: च मैत्र्याम् (स्वामिसेवकजन्मराशिपत्योः परस्परमैत्र्याम्) एवं स्थितौ सेवकेन स्वामिनः सेवा (वेतनग्रहणकार्याधंगीकाररूपासेवा) कार्या।
अर्थ - क्षिप्र एवं मैत्र संज्ञक नक्षत्रों में बुध, शुक्र, रवि एवं गुरुवार के दिन लग्न में शुभग्रह के रहते दशम अथवा एकादश स्थान में सूर्य या मंगल के रहते स्वामिसेवक दोनों के जन्मनक्षत्रों वा नामनक्षत्रों की योनियों की मैत्री होने पर और दोनों के राशिस्वामिग्रहों की भी मैत्री रहते सेवक को स्वामी की सेवा स्वीकार करनी चाहिए। नाटक एवं काव्यारम्भ मुहूर्त - (आ.सि.)
बधे विलग्ने शशिनि ज्ञराशौ गुरुवीक्षिते ।
हिबुकस्थैः शुभैः नृत्यं काव्यं चारभ्यते बुधै ॥ अन्वय - बुधे विलग्ने (लग्नगते) ज्ञराशौ (बुधराशौ मिथुने कन्यायां वा) शशिनि स्थिते तस्मिन् च गुरुवीक्षिते सति तथा च शुभैः (शुभग्रहै:) हिबुकस्थैः (चतुर्थस्थानगतैः सद्भिः) सत्समये बुधैः नृत्यं काव्यं च आरम्यते।
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