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________________ १६८ ] [ मुहूर्तराज ___ अर्थ - लग्न में बुध रहते और बुध की राशि मिथुन अथवा कन्या राशि में गुरु से दृष्ट चन्द्रमा की स्थिति में समझदार लोग नृत्य एवं कार्य का आरम्भ करते हैं। मन्त्रादि ग्रहण समय - (आ.सि.) शीतांशी बुधराशिस्थे शुभेषूदयवर्तिषु । मन्त्रादिग्रहणं कार्यं हित्वा पापग्रहोदयम् ॥ अन्वय - शीतांशौ (चन्द्रे) बुधराशिस्थे (मिथुने कन्यायां वा स्थिते) शुभेषु शुभग्रहेषु उदयवर्तिषु (लग्न गतेषु) सत्सु पापग्रहोदयम् (पापग्रहीय लग्नम्) लग्ने पापग्रहे वा स्थिते मन्त्रादिग्रहणम् कार्यम्। ___ अर्थ - बुध की राशि मिथुन वा कन्या में चन्द्र के रहते तथा शुभग्रहों के लग्न में रहते पापग्रहीय राशिलग्न को एवं लग्न में पापग्रह की स्थिति को त्याग कर मन्त्रादि ग्रहण करना शुभ है। धर्मारम्भ एवं नन्दीस्थापन मुहूर्त - (आ.सि.) हिबुकेके गुरौ लग्ने धर्मारंभो रवेर्दिने । गुरुज्ञलग्नवर्गे वा शुभरंभास्तयो र्बले ॥ अन्वय - हिबुके (चतुर्थभावे) अकें गुरौ लग्ने रवेः दिने धर्मारंभ: गुरुज्ञलग्न वर्गे (गुरोः बुधस्य राशिनवांशे लग्नस्य वगै लग्ने वर्गोत्तमे) अथवा तयोः (रविगुर्वो:) बले (बलयुक्ते) शुभारंभाः कर्तव्याः। अर्थ - चौथे स्थान में सूर्य एवं लग्न में गुरु के रहते रविवार के दिन धर्म का एवं गुरु, बुध अथवा लग्न के वर्ग में अथवा रवि, गुरु के बलयुक्त रहते सभी शुभारंभ करने चाहिएं। इति श्री सौधर्मबृहत्तपागच्छीय श्रीविजयराजेन्द्रसूरीश्वरान्तेवासिमुनि श्रीगुलाबविजयसंगृहीते मुहूर्तराजे तृतीयम् आवश्यकमुहूर्तप्रकरणम् समाप्तम् अभिमान दुर्भावना, विषयाशा, ईर्ष्या, लोभादि दुर्गुणों, को नाश करने के लिये ही शास्त्राभ्यास या ज्ञानाभ्यास करके पाण्डित्य प्राप्त किया जाता है। यदि हृदय भवन में पण्डित होकर भी ये दुर्गुण निवास करते रहे तो पण्डित और मूर्ख दोनों में कुछ भेद नहीं है - दोनों को समान ही जानना चाहिये। पण्डित, विद्वान या जानकार बनना है तो हृदय से अभिमानादि दुर्गुणों को हटा देना ही सर्वश्रेष्ठ है। श्री राजेन्द्रसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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