SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहूर्तराज ] [१५७ ___अर्थात् “रौद्राहि" श्लोकोक्त नक्षत्रों वारों एवं तिथियों का विशिष्ट योग होने पर जिन्हें रोग हो वे शीघ्र ही यमपुर के अतिथि बनते हैं, उस रोगोत्पत्ति में उक्त योग होने पर और उस दिन चन्द्रमा जन्म का चौथा आठवाँ या बारहवाँ होने पर रोगी की आवश्यक मृत्यु होती है। यदि चन्द्रमा की स्थिति अनुकूल हो मृत्यु शीघ्र नहीं होगी अथरा परिहारक धर्मानुष्ठानों द्वारा जीवन पाया जा सकेगा। औषधसेवन मुहूर्त - (मु.चि.न.प्र. श्लो. १५ वाँ) भैषज्यं सल्लघुमृदुचरे मूलभे द्वयङ्गलग्ने, शुक्रेन्द्विज्ये विदि च दिवसे चापि तेषां खेश्च । शुद्ध रिःफधुनमृतिगृहे सत्तिथौ नो जनेर्भे सूचीकर्माप्यदितिवसुभे तक्षमैत्राश्विधिष्ण्ये ॥ अन्वय - लघुमृदुचरे (लघुमृदुचरसंज्ञावस्तु नक्षत्रेषु) मूलभे तथा द्वयङ्गलग्ने (द्विस्वभावसंज्ञकेषु ३, ६, ९, १२ राशिषु लग्नगतेषु) तत्र च शुक्रेन्दु गुरौ विदि च (शुक्रचन्द्रगुरुबुधेषु तल्लग्नेषु सत्सु) पुन: शुक्र चन्द्रगुरुबुधानां खे: च वारे सत्तिथौ (रिक्तामावस्यारहितायाम्) भैषज्यम् सत् शोभनम्। तथा च लग्नाद् द्वादशसप्तमाष्टभस्थानेषु ग्रहवर्जितेषु सत्सु भैषज्यम् सत् भवति। तथा च अदितिवसुभे तक्षमैत्राश्विधिष्ण्ये (पुनर्वसुधनिष्ठा चित्रानुराधाश्विनीनक्षत्रेषु सूचीकर्म वस्त्रसीवनम् कवचघटनादिकम् च सत्। अर्थ - अश्विनी, पुष्य, हस्त, चित्रा, मृगशिर अनुराधा रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्, स्वाती पुनर्वसु और मूल इन नक्षत्रों में, द्विस्वभाव लग्नों में और उनमें शुक्र, चन्द्र, गुरु एवं बुध के रहने तथा बुध, गुरु, शुक्र चन्द्र और रविवार इन वारों में, रिक्ता अमावस आदि रहित शुभ तिथियों में रोगी को प्रथम औषध प्रारम्भ करना शुभ है। किन्तु उस दिन रोगी का जन्म नक्षत्र न हो। ___ तथा च पुनर्वसु, धनिष्ठा, चित्रा, अनुराधा और अश्विनी इन नक्षत्रों में सीवन कार्य या कवचनिर्माणादि कार्य भी प्रारम्भ करना शुभ है। इस विषय में श्रीपति, वसिष्ठ आदि का भी मतैक्य हैश्रीपति "पौष्णद्वये चादितिभद्वये च हस्तेत्रये च श्रवणत्रभे च । मैत्रे च मूले च मृगे च शस्तं भैषज्यकर्म प्रवदन्ति सन्तः ॥ वसिष्ठ हस्तत्रये पुष्यपुनर्वसौ च विष्णुत्रये चाश्विनिपौष्णभेषु । मित्रेन्दुमूलेषु च सूर्यवारे भैषज्यमुक्तं शुभवासरेऽपि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy