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________________ १३८ ] [ मुहूर्तराज अर्थ - यदि एक दिन किसी नगर से राजा को प्रस्थान करना है और उसी दूसरे नगर में प्रवेश करना है, तो ऐसी स्थिति में विद्वान को चाहिए कि वह उस नृपति के लिए केवल प्रवेश के लिए ही मुहूर्त देखना चाहिए प्रस्थान के लिए नहीं । इस प्रकार प्रस्थान विषयक सर्व विचार करने के बाद प्रयाण कार्य किस विधि से करना है, इसी आशय को लेकर चिन्तामणिकार प्रस्थानकालिक विधि बतला रहे हैंगमनसमयविधि—(मु.चि.या. प्र.श्लो. ८९ वाँ ) - उद्धृत्य प्रथमत एवं दक्षिणांघ्रिम् द्वात्रिंशत्पदमभिगम्य दिश्ययानम् । अन्वय प्रस्थानवेलायां प्रथमत एव दक्षिणाङ्घ्रिम् दक्षिण चरणम् उद्धृत्य पश्चात् द्वात्रिंशत्पदम् एतत्संख्याकपदपरिमिताम् भूमिं अभिगम्य तावत्प्रमाणां भूमिं गत्वा दिश्ययानम् गजहयरथादिकं आरुह्य आदौ गणकवराय सतिलघृतहेमताम्रपात्रम् दत्त्वा पश्चात् प्रगच्छेत् प्रस्थितो भवेत्। आरोहेत् तिलघृतहेमताम्रपात्रम् अन्वय प्रस्थान समय में सर्वप्रथम यात्रार्थी अपने दाहिने चरण को उठाकर ३२ कदम तक चले फिर दिशा प्रस्थान के लिए निश्चित सवारी पर बैठे । ततः तिल घृत एवं सुवर्ण सहित ताम्रपत्र का ज्योतिषी को दान देकर यात्रार्थ प्रस्थान करे । दत्त्वादौ गणक वराय च प्रगच्छेत् ॥ - विभिन्नदिग्यात्रार्थ विभिन्न २ यान - (मु. चि. या. प्र. श्लो. ९० वाँ ) अन्वय नृपः प्राच्यां (पूर्वदिशि ) गजेनैव गजमेवारुह्य गच्छेत्, दक्षिणस्यां दक्षिणदिशि रथेन रथमारुह्य गच्छेद् हि। प्रतीच्यां दिशि अश्वेन गच्छेत् तथा च उदीच्यामुत्तरे नरैः नरवायैर्यानै । " पालकी” इति भाषायाम् गच्छेत्। Jain Education International प्राच्यां गच्छेद् गजेनैव दक्षिणस्यां रथेन हि । दिशि प्रतीच्यामश्वेन तथोदच्यां नरैर्नृपः ॥ अर्थ राजा को चाहिए कि वह पूर्व दिशा की यात्रा हाथी पर सवारी करके करे, दक्षिण की यात्रा के लिए वह रथ का उपयोग करें। पश्चिम की यात्रा के लिए घोड़े पर सवार होकर प्रस्थान करे और उत्तर में यात्रा के लिए वह पालकी पर सवार होकर चले । यान के विषय में वराह भी " प्रागादिनागरथवाजि नरैस्तु यायात् " अर्थ - पूर्वादि दिशाओं में क्रमश: हाथी, रथ घोड़े और पालकी को सवारी के काम में लाए । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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