SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुहूर्तराज ] [ १३९ यदि प्रयाण का समय निर्णीत कर लिया जाय किन्तु किसी आवश्यकीय कार्य के आ पड़ने से उस समय यात्रा करना असम्भव हो वर्णक्रम से जिस-जिस वस्तु को प्रस्थान रूप में पहुँचाना चाहिए अर्थात् अपने घर से अन्यत्र स्थान में रखना चाहिए उस विषय में श्री चिन्तामणिकार कहते हैंयात्रा में विलम्बता के कारण प्रस्थाप्य वस्तुएँ - ( मु. चि. या. प्र . ९२ ) कार्याद्यैरिह गमनस्य चेद् विलम्बो, भूदेवादिभिरूपवीतमायुधं च । क्षौद्रं चामलफलमाशु चालनीयम् सर्वेषां भवति यदेव हृत्प्रियं वा ॥ अन्वय - कार्याद्यैः दूह गमनस्य चेद् विलम्बः तदा ( विचारिते यात्रालग्ने) भूदेवादिभिः ब्राह्मणक्षत्रविट्शूद्रैः क्रमशः उपवीतम्, आयुधं क्षोद्रं आमलफलम् च आशु स्वस्थानात् (स्वगृहाद) चालनीयम् प्रस्थापनीयम्। अथवा सर्वेषां चतुर्णामपि वर्णजातानाम् यस्य यद् वस्तु हत्प्रियं मनोहारि भवेत् तद् वस्तु प्रस्थाप्यम् । अर्थ यात्रालग्न निर्णीत हो जाने पर भी यदि किसी आवश्यक कार्यवश गमन में विलम्ब होता दिखाई दे तो यात्रार्थी विप्र को यज्ञोपवीत क्षत्रिय को कोई स्वशस्त्र विशेष वैश्य को मधु (शहद) और शूद्रवर्णको आमलकी फल (आंवले) या नारियल अपने स्थान से अन्य स्थान में प्रस्थापित कर देना चाहिए अथवा समस्त वर्णों के व्यक्तियों में जिसे जो वस्तु प्रिय हो वह उस वस्तु को प्रस्थान के रूप में प्रस्थापित करें। प्रस्थान विषय में वसिष्ठ मत श्वेतातपत्रध्वजचामराश्वविभूषणोष्णीषगजाम्बराणि अर्थात् - राजा रथयात्रा में विलम्ब होने पर निर्णीत यात्रा लग्न समय में अपनी निम्नांकित वस्तुओं से प्रियातिप्रिय वस्तु को प्रस्थापना रूप में अपने भवन से रवाना करे - यथा- श्वेतछत्र, ध्वज, चामर, अश्व, आभूषण, पगड़ी, हाथी, वस्त्र हिंडोला, पालकी, रत्न, रथ, घुड़सवार, शय्या एवं आसनादि जो मन को भाए । 1 आन्दोलिकारत्नरथाश्ववारान् शय्यासताद्यं मनसस्त्वभीष्टम् ॥ प्राच्यों के मत से प्रस्थान परिमाण - (मु.चि.या. प्र. श्लो. ९३ वाँ ) " गेहाद्गेहान्तरमपि गमः तर्हि यात्रेति गर्गः सीम्नः सीमान्तरमपि भृगुर्बाणविक्षेपमात्रम् । प्रस्थानं स्यादिति कथयतेऽथो भरद्वाज एवम्, यात्रा कार्या बहिरिह पुरात् स्याद् वसिष्ठो ब्रवीति ॥ 5 अन्वय - गेहाद् स्वगेहाद् गेहान्तरमपि अन्यगृहमपि उद्दिश्य गमः चेत् तर्हि यात्रा इति गर्गः, सीम्नः ग्रामसीमन: सीसान्नरमपि अन्यग्रामसीमानं यावद् यात्रा इनि भृगुराह । योद्धः बाजविक्षेपमात्रम् यात्रा प्रस्थानं स्तात् इति भारद्वाजः कथयते । पुरात् बहिः यात्रा कार्या इति वसिष्ठः प्रस्थानविषये ब्रावीति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy