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________________ ९८ ] [ मुहूर्तराज ___ अन्वय - शुभाः पापा: च सर्वे ग्रहाः रन्ध्रस्था: (अष्टमस्थानस्थिता:) सदा शिशो: अक्षरग्रहणे (विद्यारंभकर्मणि) नेष्टा: (अनिष्टफलदा:) भवन्ति सर्वे पापा: भ्रातृषष्ठायकर्मस्थाः शुभावहाः सर्वे शुभाः च केन्द्रत्रिकोणस्थाः तथा च धनभ्रातृगताः शुभाः (शुभदाः) सर्वे (शुभग्रहा: पापग्रहाः च) लाभे (एकादशस्थाने) प्रशस्ताः श्रेष्ठफलदाः स्युः। ___ अर्थ - बालक के विद्यारंभ की लग्नकुण्डली में शुभ अथवा पापग्रह अष्टमस्थान में अनिष्टफलदायी होते हैं। पापग्रह तृतीय, षष्ठ, एकादश और दशमस्थान में शुभद हैं और शुभ ग्रह केन्द्र (१,४,७,१० स्थानों में) त्रिकोण (९, ५ स्थानों में), द्वितीय, तृतीय स्थानों में स्थित शुभकारक हैं। किन्तु एकादशस्थान में शुभ एवं पापग्रह श्रेष्ठ फल ही देते हैं। दीक्षा मुहूर्त – (आ.सि.) दीक्षायां त्वाश्विनादित्यवारुणश्रुतयः शुभाः । त्रिषु मैत्रं करं स्वाती मूलः पौष्णं ध्रुवाणि च ॥ अन्वय - दीक्षायां तु आश्विनादित्यवारुणश्रुतयः (अश्विनीपुनर्वसुशतभिषक् श्रवणनक्षत्राणि) (शुभावहा:) त्रिषु (दीक्षायां प्रतिष्ठायां विवाहे च) मैत्रं, करं, स्वाती, मूलः, पौष्णम्, ध्रुवाणि (रोहिण्युत्ररात्रये) च (शुभकराणि नक्षत्राणि सन्ति)। ___ अर्थ - दीक्षा में तो अश्विनी, पुनर्वसु, शतभिषक् और श्रवण ये नक्षत्र शुभ हैं तथा दीक्षा, प्रतिष्ठा और विवाह में अनुराधा, हस्त, स्वाती, मूल, रेवती तथा ध्रुवसंज्ञक (रोहिणी, उ.फा., उ.षा., उ.भा.) (नक्षत्र) शुभद होते हैं। दिनशुद्धि आदि ग्रन्थों में पूर्वाभाद्रपद एवं पुष्य को भी दीक्षा कार्य में ग्राह्य माना है यथा- (दि.शु.) उत्तररोहिणीहत्थाणुराहसयभिसयपुव्वभद्दवया । पुस्सं पुणवसु रेवई मूलस्सिणि सवणसाइ वए । अर्थात् तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त, अनुराधा, शतभिषक्, पूर्वाभाद्रपद, पुष्य पुनर्वसु रेवती मूल अश्विनी श्रवण और स्वाती इतने नक्षत्र व्रत (दीक्षा) में शुभ हैं। तथा च –(दि.शु.) मृगचित्राधनिष्ठान्यमृदुक्षिप्रचर ध्रुवैः । शिष्यस्य दीक्षणं कार्यम्, तथा मूलाजपादयोः ॥ अन्वय - मृगचित्राघविष्ठान्यमृदुक्षिप्रचरध्रुवैः, तथा मूलाजपादयोः शिष्यस्य दीक्षणम् कार्यम्। अर्थ - मृगशिर, चित्रा और धनिष्ठा को छोड़कर मृदु संज्ञक, चर संज्ञक और ध्रुवसंज्ञक तथा मूल और पू. भाद्रपद इन नक्षत्रों में शिष्य को दीक्षा देनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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