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________________ मुहूर्तराज ] [९७ केन्द्र एवं त्रिकोण में (१, ४, ७, १०, ९ और ५ स्थानों में) शुभ ग्रहों के रहते बालक को विद्यारम्भ कराना श्रेष्ठ माना है। कुछ एक आचार्यों में जो उत्तरा फा.उ.षा.उ.मा. और अनुराधा इन चार नक्षत्रों को अध्ययन के लिए मान्यता दी है, उनका यह कथन धनुर्विद्याविशेष के अध्ययन के लिए है, अन्य के लिए नहीं। विद्यारंभ के विषय में श्रीपति - मृगादिपञ्चस्वपि भेषु मूलेहस्तादिके च त्रितयेऽश्विनीषु । पूर्वात्रये च श्रवणे च तद्वविद्यासमारम्भमुशन्ति सिद्धयै ॥ अन्वय - मृगादिपञ्चसु, मूले, हस्तादिके, त्रितये, अश्विनीषु, पूर्वात्रये, तद्वद् च श्रवणे (श्रवणत्रये) (आचार्याः) विद्यासमारंभ सिद्धयै उशन्ति। अर्थ - मृग, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मूल, हस्त, चित्रा, स्वाती, अश्विनी, पू.फा., पू.षा., पू.भा., श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में से किसी भी एक नक्षत्र के दिन शिशु को विद्यासमारंभ कराने से सिद्धि प्राप्त होती है, ऐसा आचार्यों का कथन है। इसी विषय में रत्नमालाकार का मत विद्यारंभः सुरगुरुसितज्ञेष्वभीष्टार्थदायी । कर्तुश्चायुश्विरमपि करोत्यंशुमान् मध्यमो वा ॥ नीहाराशौ भवति जडता पञ्चता भूमिपुत्रे । छायासूनावपि च मुनयः कीर्तयन्त्येवमाद्याः ॥ अन्वय - सुरगुरुसितज्ञेषु विद्यारंभः अभीष्टार्थदायी कर्तुः आयुः अपि चिरं करोति, अंशुमान, मध्यमः (मध्यमफलदायी) नीहारांशौ (विद्यासमारंभकरणे) तत्कर्तुः जडता भवति, भूमिपुत्रे पञ्चता (भवति) छायासूनौ अपि आद्या: मुनयः एवमेव कीर्तयन्ति। अर्थ - गुरु, शुक्र और बुध को विद्यारंभ करना इष्टफलदायी है तथा अध्ययनकर्ता की दीर्घायु होती है। विद्यारंभ के लिए रविवार मध्यमफलदायी है। चन्द्र के दिन आरंभ करने से छात्र में जड़ता आती है, तथा मंगल को विद्यारंभ करना मृत्युदायक अथवा मृत्यु तुल्य कष्टदायक है। इसी प्रकार शनि के दिन भी विद्यारंभ करने पर आचार्यों ने अध्ययनकर्ता की मृत्यु का निर्देश किया है। विद्यारंभ में लग्नशुद्धि - (मु.चि.सं.प्र. श्लो ३८ की टीका में नृसिंह) शुभाः पापाश्च रन्ध्रस्थाः सर्वे नेष्टाः सदा ग्रहाः । भ्रातृषष्ठायकर्मस्थाः पापाः सर्वे शुभावहाः ॥ शुभाः केन्द्रत्रिकोणस्थाः धनभ्रातृगताः शुभाः । सर्वे लाभे प्रशस्ताः स्युरक्षरग्रहणे शिशोः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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