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________________ ८६ ] लग्न लाने की विधि (२) अथ लग्नशुद्धि-प्रकरण यत्सूर्यराश्यंशसमानकोष्ठे घट्यादिकं स्वेष्टघटीयुतं च । ततुल्यघट्यादि भवेत्तु यत्र तत्तिर्यगूर्ध्वाङ्कमितं हि लग्नम् ॥ अन्वय - सूर्यराश्यंशसमानकोष्ठे यत् घट्यादिकं (तत्) स्वेष्टघटीयुतं कुर्यात् तत्तुल्यघट्यादि (लग्नसारणौ ) यत्र भवेत् तत्तिर्यगूर्ध्वाङ्कमितं लग्नम् हि । - अर्थ जिस समय लग्न ज्ञात करना हो उस दिन के सूर्यराशि अंश के अनुसार लग्न सारणी में देखकर जो घटीपल आवे उनमें उस समय की इष्टघटीपलों को जोड़कर उसके समान घट्यादि पुनः लग्नसारणी में देखें, बाई ओर जो अंक आवे वह लग्न की राशि और ऊपर की ओर जो अंक हो उसे लग्न के अंश समझें । लग्नस्थितिमान - ( शी. बो) लग्नराशि घ. स्थितिमान प. तिस्रो मीने च मेषे च घटयः चतस्त्रश्च वषे कुम्भे पलाः मिथुने मकरे पंच घटिकाः पंच कर्के च चापे च शशिवेदाः पलाः स्मृताः ॥ Jain Education International कन्यायां च तुले पंच घटिका पंच सिंहेऽलौ एवं लग्नप्रमाणं स्यात् अर्थ - देशान्तर रेखाओं के अनुसार भिन्न-भिन्न स्थानों की पलमाएं भी भिन्न-भिन्न होती हैं । उन पलमाओं से जो चरखण्ड होते हैं, वे भी भिन्न-भिन्न ही होते हैं। उन चरखण्डों को लंका के लग्नों के मान में ऋण धन करने पर उस स्थान के चरखण्ड आते हैं। ऊपर जो शीघ्रबोध के श्लोक अंकित किये गए हैं और लग्नों के मान बताए हैं, वहाँ के चरखण्ड ये हैं-५३, ४३, १८ इनको लंकादयमानों (२७८, २९९, ३२३, ३२३, २९९, २७८) में से तीन स्थानों पर घटाने और तीन स्थानों पर जोड़ने से उपयुक्त स्थान लग्नों की स्थिति की पलें हुईं - २२५, २५६, ३०५, ३४१, ३४२, ३३१ इनको घटी पलों में परिवर्तित करने पर मेषादि मीनान्त लग्नों का घटी पलालक मान जो आया वही ऊपर के श्लोकौं में प्रदर्शित किया गया है। स्पष्टतया समझने के लिए सारणी देखें - लग्न स्थितिमान ज्ञापक सारणी मिथु. मेष ३ ४५ वृष ४ १६ ५ ५ पंचश्रुती पलम् । प्रोक्तास्तु षोडश ॥ विशिखाः पलम् । पलाः चन्द्रस्तथाग्नयः । द्विवेदाश्च पलाः स्मृताः ॥ कथितं पूर्वसुरिभिः ॥ ५ ४१ कर्क सिंह कन्या तुला वृश्चि. धनु मकर कुंभ मीन ५ ४२ ५ ३१ ५ ३१ For Private & Personal Use Only = [ मुहूर्तराज ५ ४२ ४१ ५ 5 ५ ४ १६ ܚ ३ ४५ www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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