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________________ मुहूर्तराज ] [८७ लग्ननवांश ज्ञान-(आ.सि.) नवांशाः स्युरजादीनामजैणतुलकर्कतः । वर्गोत्तमाश्चरादौ ते प्रथमः पञ्चमोऽन्तिमः ॥ अन्वय - अजादीनाम् राशीनाम् अजैणतुलकर्कत: नवांशाः स्युः ते च चरादौ (चरस्थिरद्विस्वभावादिषु राशिषु) प्रथमः पञ्चमः अन्तिमः (नवमः) वर्गोत्तमाः स्युः। . अर्थ - मेषादि राशियों के क्रमश: मेष, मकर, तुला और कर्क से प्रारम्भ होने वाले नवांश होते हैं। चर राशियों में (मेष, कर्क, तुला, मकर) आदि नवांश स्थिरराशियों में (वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) पञ्चम नवांश तथा द्विस्वभाव राशियौं में (मिथुन, कन्या, धन और मीन) अन्तिम नवांश वर्गोत्तम कहलाते हैं। नवांशों की प्रधानता-(आ.सि.टी.) लग्ने शुभेऽपि यद्यशः क्रूरः स्यान्नेष्टसिद्धिदः । लग्ने क्रूरेऽपि सौम्यांशः शुभदोंऽशो बली यतः ॥ __ अन्वय - लग्ने शुभेऽपि यदि अंश: (नवांश:) क्रूरः (क्रूरग्रहस्य) स्यात् तदा सः इष्टसिद्धिदः न भवति। किन्तु लग्ने क्रूरेऽपि यदि सौभ्यांश: (सौम्यग्रहीयनवांश:) स्यात्तदा सः शुभद: यतः अंश: (नवांश) बली (भवति) अर्थ - लग्न के शुभग्रहीय होते पर भी यदि लग्न के अंश क्रूरग्रहीय हो तो वह इष्टसिद्धि देने वाला नहीं होता। परन्तु यदि लग्न क्रूर हो और उसके अंश शुभग्रहीय हो तो वह लग्न शुभदायी माना गया है, क्योंकि नवांश ही प्रधान अथवा बलवान् होता है। कुण्डली के बारह स्थानों के नाम- (आ.सि.) लग्नाद् भावास्तनद्रव्यभातृबन्धुसुतारयः । - स्त्रीमृत्यु धर्मकर्मायव्ययाश्च द्वादश स्मृताः ॥ ___ अर्थ :- कुण्डलीगत बारह भावों के नाम हैं- १ तनु २ द्रव्य ३ भ्रातृ ४ बन्धु ५ सुत ६ अरि ७ स्त्री ८ मृत्यु ९ धर्म १० कर्म ११ आय १२ व्यय। भावों की केन्द्रादि संज्ञाएं- (आ.सि.) केन्द्र चतुषय कण्टक नामानि वपुः सुखास्तदशमानि । स्युः पणफरादि परतः तेम्योऽप्यापोक्लिमानीति ॥ वपुः (लग्नम्) सुखास्तदशमानि (चतुर्थसप्तमदशमभावाः) केन्द्र चतुष्टय कंटक नामानि (केन्द्रचतुष्टय कंटक संज्ञकाः) सन्ति। परत: (द्वितीयपञ्चमाष्टैकादशभावाः) पणफरादि (पणफर संज्ञाः) सन्ति तेम्योऽपि परत: (तृतीय षष्ठनवमद्वादशभावाः) आपोक्लिमानि (आपोक्लिमनामका) भवन्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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