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________________ मुहूर्तराज ] यहाँ वराह "उपग्रहर्क्षेषु विवाहिता स्त्री सूर्यर्क्षतो दुर्भगतामुपैति " अर्थात् सूर्यनक्षत्र से उपग्रहकारक नक्षत्रों में यदि चन्द्रनक्षत्र हो तो उस समय विवाहित नारी विधवा होती है | और भी - वराह मत से - ग्रहप्रवेशे दारिद्रयम्, विवाहे मरणं भवेत् । प्रस्थाने विपदः प्रोक्ताः उपग्रहदिने यदि ॥ अर्थ उपग्रह के दिन यदि गृह प्रवेश किया जाए तो दरिद्रता, विवाह किया जाय तो मरण और यात्रा में विपत्तियाँ होती हैं। कश्यप मत से - अपवाद "वाहीके कुरुदेशे च वर्जयेद् भमुपग्रहम्" अर्थात् वाह्लीक और कुरुदेश में उपग्रहयुक्त नक्षत्र का त्याग करना चाहिए । विषयाभिलाषी मनुष्य अपने कुटुम्बियों के निमित्त क्षुधा, तृषा सहन करता हुआ धनोपार्जनार्थ अनेक जंगलों, सम-विषम स्थानों नदी, नालों और पर्वतीय प्रदेशों में इधर-उधर दौड़ लगाता रहता है और यथाभाग्य धन लाकर कुटुम्बियों का यह जानकर पोषण करता है कि ये समय पर मेरे दुःख में सहयोग देंगे-भागीदार बनेंगे। यो करते-करते मनुष्य जब वृद्धावस्था से घिर जाता है, तब कुटुम्बी न कोई सहयोग देते हैं और न उसके दुःख में भागीदार बनते हैं। प्रत्युत सोचते हैं कि यह कब मेरे और इससे छुटकारा मिले। बस, यह है रिश्तेदारों का स्वार्थमूजब प्रेमभाव, अतः इनके प्रपंचों को छोड़कर जो धर्मसाधन करेगा वह सुखी रहेगा। Jain Education International [ ८१ For Private & Personal Use Only श्री राजेन्द्रसूरि www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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