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मुहूर्तराज ]
[६७ अथ होलिकाष्टक दोष- (शी.बो.)
शुक्लाष्टमी समारभ्यफाल्गुनस्य दिनाष्टकम् ।
पूर्णिमार्वाधकं त्याज्यम् होलाष्टकमिदं शुभे ॥ अर्थ - फाल्गुन शुक्ला ८ से १५ तक का ८ दिनों का यह समय होलाष्टक कहा जाता है, जिसे शुभ कार्यों में त्यागना चाहिये। इसका अपवाद भी- (शी. बोध)
शुतुद्रवां च विपाशायामैरावत्यां त्रिपुष्करे ।
होलाष्टकं विवाहादौ, त्याज्यमन्यत्र शोभनम् ॥ अर्थ - शुतुद्र (सतलज) विपाशा (व्यास) और ऐरावती (राखी) इन नदियों के तटवर्ती नगरों में, त्रिपुस्कर नामक देश में विवाहादि शुभकृत्य में होलाष्टक त्याज्य है, इनके अतिरिक्त स्थानों पर तो होलाष्टक शुभ है।
(१) सतलज तटवर्ती नगर- धावलपुर, लुधियाना, शिमला, फिरोजपुर इत्यादि हैं। (२) रावी तटवर्ती नगर- मुलतान, लाहौर, अमृतसर इत्यादि हैं।
(३) व्यास तटवर्ती नगर- गुरुदासपुर (जहाँ की मिट्टी के बर्तन अतिप्रसिद्ध और सुन्दर होते हैं) होशियारपुर, कैङ्गडा, मण्डी, कपुरथला (जहाँ सुलतान पदवी धारी शासक थे) आदि हैं।
पाश्चात्य विद्वानों ने अन्वेषण के आधार पर शुतुद्र, इसावती और विपाशा इन नामों से पूर्वकाल में प्रसिद्ध नदियों को आजकल की नामधारी सतलज, रावी और व्यास कहा है। वे कहते हैं कि ये तीनों नदियाँ पंजाब प्रदेश में दक्षिण की ओर बहती हुई अति दूरस्थ सिन्धु महानदी में मिलकर अन्त में उसी (सिन्धु नदी) के मुहाने पर स्थित अरेवियन नामक सागर में मिलती है।
विशेष - ये पंक्तियाँ हिन्दी रूपान्तरित है। मूल पंक्तियाँ संस्कृत में हैं, जो कि मु. चिन्तामणि के शुभाशुभ प्रकरण के श्लोक ४० वें की पादटिप्पणी में लिखित हैं। यह पादटिप्पणी श्री पं. मदनूपमिश्र (बनारस गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज भू.पू. अध्यापक) द्वारा लिखित है, जिसका कि नाम “युक्तिमञ्जरी” है। विवाहदशदोष- (पु.मा.)
लत्ता पातो युतिर्वेधः यामित्रं बुणपंचकम् । एकार्गलोपग्रहौ च क्रान्तिसाम्यं ततः परम् ॥ दग्धातिथिश्च विज्ञेयाः दश दोषा महाबलाः ।
एतान् दोषान् परित्यज्य लग्नं संशोधयेद् बुधः ॥ अर्थ - विवाह के ये दस दोष हैं-लत्ता, पता, युति, वेध, यामित्र, बाणपंचक (ब्रधपंचक) एकार्गल उपग्रह, क्रान्तिसाम्य एवं दग्ध तिथि। ये दोष महान् बलिष्ठ हैं एवं अनिष्टकारी हैं। विद्वानों को चाहिए कि वे इन दोषों का त्याग करके विवाह मुहूर्त निश्चित करें।
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