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________________ मुहूर्तराज ] [६३ __ अन्वय - जन्मनक्षत्र जन्ममास जन्मतिथयः व्यतिपात भद्रावैधृतिदर्शपितृ (मातापित्रौः) दिनम् (मरणदिनम् = श्राद्धदिवस:) तिथिक्षयी (तिथिक्षयतिथिवृद्धि) न्यूनाधिमासकुलिकप्रहरार्धपाताः विष्कुंभवज्रघटिकात्रयमेव वय॑म् ॥ अर्थ - जन्म नक्षत्र, जन्ममास जन्मतिथि ये तीनों आद्यगर्भ के लिए ही वर्ण्य हैं क्योंकि, नारद का मत हैं-"जन्म मासे न जन्मः न जन्मदिवसेऽपिवा। आद्यगर्भसुतस्या पि दुहितुर्वा करग्रहः” तथा व्यतिपातयोग, भद्रा, वैधृतियोग, माता-पिता का मृत्युदिन = श्राद्धदिन, तिथिक्षय तिथिवृद्धि, क्षयमास, अधिकमास, कुलिक प्रहरार्ध (वारसम्बन्धी आधे प्रहर का दोष) पात अर्थात् महापात (सूर्यचन्द्र का क्रान्ति साम्य) वज्र और विष्कुंभ योग की आदि की तीन-तीन घड़ियाँ सभी कार्यों में त्यागने योग्य है। इस विषय में बृहस्पति का मत नित्ये नैमित्तिके कार्ये जपहोमक्रियासु च । उपाकर्मणि चोत्सर्गे ग्रह वेधो न विद्यते ॥ अर्थ - नित्य एवं नैमित्तक कार्यों जप एवं होमादि क्रियाओं में, श्रावणी उपाकर्म में और वृषोत्सर्ग में ग्रहदोष नहीं लगा करता। गुरु एवं शुक्र के अस्तकाल में वर्जनीय कार्य- (ज्यो. सा.) वापीकूपतडागयागगमनं क्षौरं प्रतिष्ठाव्रतम् । विद्यामन्दिरकर्णवेधनमहादानं वनं सेवनम् ॥ तीर्थस्नानविवाहदेवभवनं मन्त्रादि देवेक्षणम् । दूरेणैव जिजीविषुः परिहरेत् अस्ते गुरौ भार्गवे ॥ अन्वय - जिजीविषुः गुरौ भार्गवे चास्ते वापीकूपतडागयागगमनं क्षौरं प्रतिष्ठाव्रतम् विद्यामन्दिरकर्णवेधनमहादानं वनं सेवनं तीर्थस्नानविवाह देवभवनं मन्त्रादि देवेक्षणम् दूरेणैव परिहरेत्। अर्थ - जीवन की इच्छावाले पुरुष को चाहिए कि वह जब गुरु और शुक्र अस्त हो, तब बावड़ी, कूप, तालाब खुदवाना, यज्ञ, यात्रा, क्षौर (प्रथममुण्डन) = चौल संस्कार देव प्रतिष्ठा, यज्ञोपवित, विद्यारंभ, ग्रहकर्म, कर्णवेध, षोड़शमहादान, आराम (बाग लगवाना) राजा एवं गुरु की सेवा, (गुरु के पास रहकर विद्याध्ययन) तीर्थस्नान, विवाह, देव का प्रथमदर्शन आदि कार्यों को दूर से ही अर्थात् सर्वथा छोड़ दे। इस विषय में शातातप अस्तं गते गुरौ शुक्रे वाले वृद्ध मलिम्लुचे । उद्यापनमुपारंभं व्रतानां नैव कारयेत् ॥ अर्थ - गुरु एवं शुक्र के अस्तकाल में, उनके बालत्व एवं वृद्धत्व में तथा मलमास में व्रतों का प्रारम्भ एवं समापन (उद्यापन) नहीं करना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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