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शार्ङ्गयविवाहपटल में भी
विवाहो व्रतबंधो वा यात्रा वा गृहकर्म च । गुरावस्तमिते शुक्रे धुवं मृत्युं विनिर्दिशेत् ॥
अर्थ - विवाह, व्रतबंध (यज्ञोपवीतधारण) यात्रा अथवा गृहकर्म आदि कार्य यदि गुरु, शुक्र के अस्त काल में किए जाएं तो कर्ता की मृत्यु अथवा उसे मृत्युतुल्य कष्ट (व्यथा, दुःख, भय, लज्जा, रोग, शोक एवं मृत्यु) भुगतने पड़ते हैं ।
सिंह एवं मकर राशि स्थित गुरु दोष- (लल्लाचार्य)
नीचस्ये वक्रसंस्थेऽप्यतिचरण गते बाल दृद्धेऽस्तगे वा । संन्यासो देवयात्रा व्रतनियमविधिः कर्णवेधस्तु दीक्षा ॥ मौजीबन्धो गणानां परिणयनविधिर्वास्तुदेवप्रतिष्ठा । वर्ज्याः सद्भिः प्रयत्नात् त्रिदशपतिगुरौ सिंहराशिस्थिते वा ॥
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अन्वय - त्रिदशपतिगुरौ नीचस्थे, वक्रमंस्थे अतिचरणगतेऽपि बालवृद्धे अस्तगे सिंहराशिस्थिते वा संन्यासो, देवयात्रा, व्रतनियमविधिः, कर्णवेध:, दीक्षा, गणानां मौञ्जीबन्धः परिणयनविधिः वास्तु, देवप्रतिष्ठा ( एते) सद्भिः प्रयत्नाद् वर्ज्याः । -
अर्थ
जब देवगुरू मकरराशि पर हो, वक्र हो, बार-बार वक्रगति एवं मार्गी हो, बाल, वृद्ध या अस्त हो अथवा सिंहराशि स्थित हो, तब संन्यासग्रहण, अपूर्वदेवयात्रा, व्रतों एवं नियमों की विधि, कर्णवेध, परिणयन विधि (विवाह) वास्तुकर्म और देव प्रतिष्ठा इन्हें सज्जनों द्वारा प्रयत्नपूर्वक छोड़ना
दीक्षा, उपनयन,
चाहिए।
गुर्वादित्य पदार्थ के विषय में - (गुरु)
[ मुहूर्तराज
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गुरुक्षेत्रगतो भानुः भानु क्षेत्रगतो गुरुः । गुर्वादित्यः सविज्ञेयो गर्हितः सर्वकर्मसु ॥
अर्थ जब गुरु की राशि (धनु और मीन) पर सूर्य हो और सूर्य की राशि (सिंह) पर गुरु हो उसे गुर्वादित्य कहते हैं, यह समय सभी कार्यों के लिए निन्दित है, अर्थात् उस समय किसी भी शुभ कार्य को नहीं करना चाहिए। परन्तु गुर्वादित्य की यह परिभाषा सर्वमतसम्मत नहीं है । इस विषय में मु. चि. शुभाशुभ प्रकरण के श्लोक ४८वें " अस्ते वर्ज्यं सिंहनक्रस्थ जीवे वर्ज्यं केचिद् वक्रगे चातिचारे । गुर्वादित्ये विश्वधस्त्रेऽपि पक्षे, प्रोचुस्त्दवद्दन्तरत्नादिभूषणम् । ” इस श्लोक में स्थित “ गुर्वादित्य" की व्याख्या करते हुए पीयूषधारा के इस स्थल को देखिए-यत्तु गुरुवचनम् “गुरुक्षेत्रगतो गुरुः । गुर्वादित्यः स विज्ञेयो गर्हितः सर्वकर्मसु । ” इति तद् अविचारितरमणीयम्। तथाहि गुरुक्षेत्रे धनुर्मीनौ राशि तत्र भानुः स गुर्वादित्यः तत् असत् । धनुरर्कस्य दक्षिणायनत्वाद् एव निषेध सिद्धेः मीनार्कस्य तु यज्ञोपवित व्यतिरिक्तकार्यमात्रासिद्धेः । अर्थात् गुरु की राशियां धनु और मीन हैं, उनपर जब सूर्य उसे गुर्वादित्य कहना अनुपयुक्त होगा क्योंकि धनार्क में तो दक्षिणायन
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