________________
[४५
मुहूर्तराज ]
अन्वय - पूर्वैः सूर्ये अर्कमूलोत्तरपुष्यदास्रम् (हस्तमूलोत्तरत्रयपुष्याश्विन्यः) चन्द्रे श्रुतिग्रह्मशशीज्यमैत्रम् (श्रवणरोहिणीमृगशिरः पुष्यानुराधाः) भौमे अश्व्यहिर्बुध्यकृशानुसार्पम् (अश्विन्युत्तराभाद्रपद कृतिकाश्लेषाः) ज्ञे (बुधे) ब्राह्ममैत्रार्ककृशानुचान्द्रम् (रोहिण्यनुराधाहस्तकृतिकामृगशिरोनक्षत्राणि) गुरौ रेवतीमैत्राश्व्यदितीज्यधिष्ण्यम् (रेवत्यनुराधाश्विनीपुनर्वसुपुष्यनक्षत्राणि) शुक्रे अन्त्यमैत्राश्व्यदितीश्रवोभम् (रेवतीअनुराधाश्विनीपुनर्वसुश्रवणनक्षत्राणि) शनौ श्रुतिब्राह्मसमीरभानि (श्रवणरोहिणीस्वातिनक्षत्राणि) एतानि सर्वार्थसिद्धयै कथितानि।
अर्थ - रविवार को हस्त, मूल, तीनों उत्तरा, पुष्य और अश्विनी के, सोम को श्रवण, रोहिणी, मृगशिर, पुष्य और अनुराधा के, मंगल को अश्विनी, उ. भाद्र., कृत्तिका और आश्लेषा के, बुध को रोहिणी अनुराधा, हस्त, कृत्तिका और मृगशिर के, गुरु को रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु और पुष्य के. शुक्र को रेवती, अनुराधा, अश्विनी, पुनर्वसु और श्रवण के, तथा शनिवार को रोहिणी, श्रवण और स्वाती के होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग होते हैं, ऐसा पूर्वाचार्यों का मत है।
-अथ दिन एवं नक्षत्र योगसंभव सर्वार्थ सिद्धियोग ज्ञापक सारणी
वार
नक्षत्र नाम
नक्षत्र संख्या
रवि
हस्त
मूल
पुष्य
अश्विनी
सोम मंगल
उ.फा., उ.षा उ.भा. मृगशिर कृतिका
पुष्य
अनुराधा
बुध
हस्त
श्रवण अश्विनी रोहिणी रेवती रेवती श्रवण
रोहिणी उत्तराभाद्र अनुराधा अनुराधा अनुराधा रोहिणी
मृगशिर
आश्लेषा कृतिका पुनर्वसु पुनर्वसु
गुरु
पुष्य
अश्विनी अश्विनी स्वाती
I» II Ir
शुक्र
श्रवण
शनि
सिद्धियोग एवं उनके फल- कश्यप मत से
नंदातिथिः शुक्रवारे, सौम्ये भद्रा कुजे जया । रिक्ता मन्दे गुरौ वारे पूर्णा सिद्धाह्वया तिथिः ॥
अर्थ - शुक्रवार को नन्दा तिथि (१-६-११) बुधवार को भद्रा तिथि (२-७-१२) मंगल को जया तिथि (३-८-१३) शनि को रिक्ता तिथि (४-९-१४) एवं गुरु को पूर्णा तिथि (५-१०-१५) होने पर सिद्धि योग बनता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org