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________________ [ मुहूर्तराज ४४ ] अर्थ भद्रा, मंगलवार, व्यतिपात, वैधृति, प्रत्यरिनामक तारा, जन्मनक्षत्र इन सभी कुयोगों में भी दोपहर के बाद किसी भी श्रेष्ठ कार्य को करना शुभफलदायी है, अर्थात् उस दिन (जिस दिन ऊपर लिखे भद्रादि दोष हों) शुभकार्य किया जा सकता है । तिथि विशेष का योग होने पर समस्त शुभ कृत्यों में सिद्धिदायी हस्तार्कादि योग भी त्यागने योग्य होते हैं। यथा - (मु. चि. शु. प्र. श्लो २०, २१) वर्जयेत् सर्वकार्येषु, हस्तार्क पञ्चमीतिथौ । भौमाश्विनीं च सप्तभ्यां षष्ठयां चन्द्रैन्दवं तथा ॥ बुधानुराधामष्टभ्याम्, दशम्यां भृगुरेवतीम् । नवभ्यां गुरुपुष्यं चैकादश्यां शनिरोहिणीम् ॥ सर्वकार्येषु पञ्चमी तिथौ हस्तार्कम् (रविवारे हस्तनक्षत्रम्) सप्तभ्याम् भौमाश्विनीम् (भौमवासरेऽश्विनी नक्षत्रम्) षष्ठयाम् चन्द्रैन्दवम् (सोमवारे मृगशिरोनक्षत्रम्) तथा अष्टभ्याम् बुधानुराधाम् (बुधवासरे अनुराधानक्षत्रम्) दशभ्याम् भृगुरेवतीम् (शुक्रवारे रेवती नक्षत्रम्) नवभ्याम् गुरुपुष्यम् (गुरुवारे पुष्य नक्षत्रम् ) एकादश्याम् च शनिरोहिणीम् (शनिवासरे रोहिणीभम् ) वर्जयेत्। अन्वय अर्थ समस्त शुभकार्यों में पंचमी तिथि को यदि रवि और हस्त नक्षत्र हो, सप्तमी को मंगल और अश्विनी हो, षष्ठी को सोमवार और मृगशिरा नक्षत्र हो, अष्टमी को बुधवार और अनुराधा हो, दशमी को शुक्रवार और रेवती हो, नवमी को गुरुवार और पुष्य हो तथा एकादशी को शनिवार तथा रोहिणी हो तो इनका अवश्यमेव त्याग करना चाहिये । कार्य विशेष में भौमाश्विनी आदि सिद्धियोग भी त्याज्य है, इसी बात को मु. चिन्तामणिकार कहते हैंसिद्धियोग भी कार्य विशेष निन्दनीय (मु.चि. शु.प्र. श्लो. २२) गृहप्रवेशे यात्रायां विवाहे च यथाक्रमम् । भौमाश्विनीं शनौ ब्राह्मं गुरौ पुष्यं विवर्जयेत् ॥ - अर्थ नूतन गृहप्रवेश भौमवार + अश्विनी का, यात्रा में शनि + रोहिणी का और विवाह में गुरु + पुष्य का त्याग करना चाहिये । राजमार्तण्ड में भी - भौमाश्विनीं प्रवेशे च प्रयाणे शनिरोहिणीम् । गुरुपुष्यं विवाहे च सर्वथा परिवर्जयेत् ॥ सूर्यादिवारौ और नक्षत्र विशेषों के योग से सर्वार्थसिद्धि योग - (मु.चि. शु.प्र. श्लो. २८-२९) सूर्येऽर्कमूलोत्तरपुष्यदास्त्रं, चन्द्रे श्रुतिब्राह्मशशीज्यमैत्रम् । भौमेऽश्व्यहिर्बुध्न्यकृशानुसार्पम्, ज्ञे ब्राह्मामैत्रार्ककृशानु चान्द्रम् ॥ जीवेऽन्त्यमैत्राश्व्यदितीज्यधिष्ण्यम्, शुक्रेऽन्त्यमैत्राश्व्यदितिश्रवोभम् । शनौ श्रुतिब्राह्मसमीरभानि, सर्वार्थसिद्धयै कथितानि पूर्वैः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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