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________________ ४६ ] [ मुहूर्तराज इनके फल-वसिष्ठ मत में सिद्धातिथिर्हन्ति समस्तदोषान्, यान् मासशून्यानपि मासदग्धान् । दिनप्रदग्धानपि चान्यदोषान् एकादशी यद्वदशेषपापम् ॥ __ अर्थ - जिस प्रकार एकादशी व्रत समस्त पापों का नाश करता है, उसी प्रकार सिद्ध तिथि मासशून्य, मासदग्ध, दिनदग्ध एवं अन्य दोषों का निवारण करती है। कुमार योग (सर्वत्र शुभद) (आ.सि.) योगःकुमारनामा शुभः कुजज्ञेन्दुशुक्रवारेषु । अश्व्याद्यैद्वर्यन्तरितैर्नन्दादशपंचमीतिथिषु ॥ अन्वय - नन्दादशपंचमीतिथिषु कुजज्ञेन्दुशुक्रवारेषु सत्सु द्वयन्तरितैः अश्विन्याद्यैः नक्षत्रैः सद्भिः (१, ६, ११, १०, ५ तिथिनामेकतमायाः तथा कुजबुधचन्द्रशुक्रवारणामेकतमस्य तथैव अश्विनी रोहिणी पुनर्वसु इत्यादिद्वयन्तरितनक्षत्राणाम् एकतमस्य भस्य) अर्थात् (उपर्युक्त तिथि+उपर्युक्तवार+उपर्युक्त नक्षत्र) एषां त्रयाणां सहयोगेन कुमारनामा शुभो योगो भवति। अर्थ - नन्दादशपंचमीतिथियो (१, ६, ११, १०, ५) में से किसी एक तिथि के मंगल, बुध, चन्द्र और शुक्र इन वारों में किसी एक वार के तथा एकान्तर से अश्विनी कृतिका आदि नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र के इन (तिथि+वार+नक्षत्र) तीनों के एक साथ होने पर कुमार नामक योग बनता है, जो कि सर्वेष्ट सिद्धिदायक होता है। -अथ कुमार योग ज्ञापक चक्रवार नाम तिथियाँ नक्षत्रों के नाम मंगल, बुध, चन्द्र . १, ६, ११, १०, ५ | अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, हस्त, विशाखा, मूल, शुक्र इनमें से + | इनमें से + श्रवण, पूर्वाभाद्रपद, इन नक्षत्रों में से किसी एक नक्षत्र के किसी एक वार के किसी एक तिथि योग होने पर कुमार योग कुमार योग के सम्बन्ध में हरिभद्रसूरि का मत परमयं विशिष्य स्थिरकर्मणि मैत्रीदीक्षाव्रतविद्याशिल्पग्रहणादौ शुभः अयं च विरुद्धयोगोत्पत्तिं वर्जयता ग्राह्यस्तेन भौमे दशमी पूर्वाभाद्रपदा च, सोमे एकादशी विशाखा च, बुधे प्रतिपन्मूलनश्विनी च, शुक्रे रोहिणी एते कुमारयोगा अपि नेष्टा यथासंभवं कर्कसंवर्तककाणयमघंटयोगोत्पत्तेः इति। अर्थात् यह कुमार योग मैत्री, दीक्षा, व्रतविद्या एवं शिल्पशिक्षा आदि में ही शुभ है। इस योग का ग्रहण तभी करना चाहिए जबकि विरुद्धयोग की उत्पत्ति उस दिन न होती हो। अर्थात् मंगलवार को दशमी और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के बुधवार को प्रतिपदा और मूल अथवा अश्विनी के तथा शुक्रवार को रोहिणी के होने पर कर्क संवर्तक काण और यमघंट योग होते हैं। अत: उपर्युक्त के सम्मिलन से बना कुमार योग शुभफलदायी न होकर नेष्ट फलदायी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001933
Book TitleMuhurtraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay Khudala
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Jyotish, L000, & L025
File Size11 MB
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