SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थकर [ ३१ ...क: पंजरमध्यास्ते...क : परुषनिस्वन: ? कः प्रतिष्ठा जीवानां....कः पाठयोक्षरच्युतः? ॥१२--२३६॥ माता ! पिंजरे में कौन रहता है ? कठोर शब्द करनेवाला कौन है ? जीवों का आश्रय कौन है ? अक्षर-च्युत होने पर भी पढ़ने योग्य क्या पाठ है ? माता ने उत्तर दिया-- शुकः पंजरमध्यास्ते काकः परुष-निस्वनः । लोकः प्रतिष्ठा जीवानां श्लोकः पाठ्योक्षरच्युतः॥२३७॥ क: पंजरमध्यास्ते ? -इसमें शु शब्द जोड़कर माता कहती हैं-शुक पिंजरे में रहता है। दूसरे प्रश्न के उत्तर में माता “का” शब्द जोड़कर कहती हैं--कठोर स्वर वाला काक पक्षी होता है। तीसरे प्रश्न के उत्तर में माता लो शब्द को जोड़कर कहती हैं-जीवों का आश्रय लोक है। चौथे प्रश्न के उत्तर में माता कहती हैं-- श्लो शब्द को जोड़ने से अक्षर-च्युत होने पर भी श्लोक पठनीय है । तीन देवियों ने क्रम-क्रम से ये प्रश्न पूछे कः समत्सज्यते धान्ये घटयत्यम्ब को घटम ? वृषान्दशति कः पापी वदाथै रक्षरैः पृथक् ? ॥२४४॥ माता ! धान्य में क्या छोड़ दिया जाता है ? घट को कौन बनाता है ? वृषान् अर्थात् चूहों को कौन पापी भक्षण करता है ? इनका उत्तर पृथक्-पृथक् शब्दों में बताइये जिनके आदि के अक्षर पृथक्पृथक् हों ? माता ने उत्तर दिया- पलाल धान्य में छोड़ा जाता है। कुलाल -कुंभकार घट को बनाता है । बिडाल चूहों को खाता है। इस उत्तर में प्रारम्भ के दो शब्द पृथक्-पृथक् होते हुए अन्त का अक्षर ल सबमें है। प्रगट रूप से अनेक देवियाँ माता की बड़े विवेक पूर्वक सेवा करती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy