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________________ ३० ] तीर्थकर मनोहर-चित्रण रत्नगर्भा घरा जाता हर्षगर्भाः सुरोत्तमाः । क्षोभमायाज्जगद्गर्भो गर्भाधानोत्सवे विभोः ॥१२--६८॥ भगवान के गर्भकल्याणक के उत्सव के समय पृथ्वी तो रत्नवर्षा के कारण रत्नगर्भा हो गई, सुरराज हर्षगर्भ अर्थात् हर्षपूर्ण हो गए हैं। जगत्गर्भ अर्थात् पृथ्वीमण्डल क्षोभ को प्राप्त हुआ, अर्थात् संसार भर में गर्भावतरण की वार्ता विख्यात हो गई। गर्भस्थ शिशु जैसे-जैसे वर्धमान हो रहे थे, वैसे-वैसे माता की बुद्धि विशुद्ध होती जा रही थी। नवमा माह निकट आने पर सेवा में संलग्न देवियों ने अत्यन्त गूढ़ तथा मनोरंजक प्रश्न माता से पूछना प्रारम्भ किया तथा माता द्वारा सुन्दर समाधान प्राप्त कर वे हर्षित होती थीं। सेवा का आनन्द कोई यह सोचे कि जिन-जननी की विविध प्रकार से सेवा करने में महान् पुण्यवती देवियों को कष्ट होता होगा, तो अनुचित बात होगी। जिन माता के गर्भ में मति, श्रुत, अवधिज्ञानधारी तीर्थंकर-प्रकृति सम्पन्न जिनेन्द्रदेव हैं; उनकी सेवा तथा सत्संग से जो उनको आनन्द प्राप्त होता था, वह स्वात्म-संवेद्य ही था। दूसरा व्यक्ति उस महान सौभाग्यजनित रस का कैसे कथन कर सकता है ? तीर्थंकर रूप अपूर्व निमित्त के सयोग से माता के ज्ञान का अदभत विकास हो गया था । देवता भी माता के महान ज्ञान तथा अनुभव से अपने को कृतार्थ करते थे । माता से प्रश्नोत्तर देवियों के द्वारा माता से किए गए प्रश्नोत्तरों की रूपरेखा समझने के लिये महापुराण में लिखित ये प्रश्नोत्तर महत्वपूर्ण हैं। देवियों ने पूछा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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